Supreme Court: 'क्या कोई व्यक्ति इतना जरूरी हो सकता है कि...', ED निदेशक के मामले में SC का केंद्र से सख्त सवाल
SC Question To Central Government: सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि आपके हिसाब से ईडी में कोई अन्य व्यक्ति योग्य नहीं है? एजेंसी का 2023 के बाद क्या होगा, जब वो सेवानिवृत्त होंगे ?
Supreme Court On ED Director Sanjay K Mishra: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा को और सेवा विस्तार नहीं देने के निर्देश के बावजूद उनके कार्यकाल की अवधि तीसरी बार बढ़ाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को लेकर बुधवार (3 मई) को केंद्र सरकार से सवाल किया कि क्या कोई व्यक्ति इतना जरूरी हो सकता है कि उसके बिना काम नहीं हो सके?
कार्यकाल का विस्तार छोटी अवधि का हो
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने 2021 के अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा था कि सेवानिवृत्ति की आयु होने के बाद प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के पद पर रहने वाले अधिकारियों को दिया गया कार्यकाल का विस्तार छोटी अवधि के लिए होना चाहिए और उसने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि मिश्रा को सेवा में आगे कोई विस्तार नहीं दिया जाएगा.
अदालत ने कहा, ‘‘क्या संगठन में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो उनकी जिम्मेदारी निभा सके? क्या कोई व्यक्ति इतना जरूरी हो सकता है कि उसके बिना काम ही नहीं हो सके?’’ न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने केंद्र की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘‘आपके हिसाब से, प्रवर्तन निदेशालय में कोई अन्य व्यक्ति योग्य नहीं है? एजेंसी का 2023 के बाद क्या होगा, जब वह सेवानिवृत्त होंगे?’’
सॉलिसिटर जनरल ने क्या कहा ?
इससे पहले मेहता ने कहा कि मिश्रा का सेवा विस्तार प्रशासनिक कारणों से जरूरी है और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) द्वारा भारत के आकलन के लिए महत्वपूर्ण है. मेहता ने कहा, ‘‘धनशोधन को लेकर भारत के कानून की अगली समीक्षा 2023 में होनी है और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय में नेतृत्व की निरंतरता महत्वपूर्ण है कि भारत की रेटिंग नीचे न गिरे.’’
उन्होंने कहा कि कार्य बल के साथ पहले से ही बातचीत कर रहा व्यक्ति इससे निपटने के लिए सबसे उपयुक्त है. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हालांकि कोई व्यक्ति इतना अहम नहीं होता कि उसके बाद काम नहीं हो सके, लेकिन ऐसे मामलों में निरंतरता जरूरी होती है. दलीलों की शुरुआत में सॉलिसिटर जनरल ने कुछ जनहित याचिकाएं दायर करने वाले राजनीतिक दलों के उन नेताओं के हस्तक्षेप के अधिकार पर सवाल उठाया, जिन्होंने प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख की सेवा में विस्तार की अनुमति देने वाले संशोधित कानून को चुनौती दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों जताई असहमति ?
शीर्ष अदालत ने मेहता के इस प्रतिवेदन पर असहमति जताई और कहा, ‘‘केवल इसलिए कि कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक दल का सदस्य है, क्या यह उसे याचिका दायर करने की अनुमति नहीं देने का आधार हो सकता है? क्या उसे अदालत आने से रोका जा सकता है?’’ मेहता अपनी बात पर अड़े रहे और उन्होंने कहा कि जनहित याचिका को निजी हित नहीं, बल्कि जनहित तक सीमित होना चाहिए. मामले में सुनवाई पूरी नहीं हो सकी और आठ मई को जारी रहेगी.
अदालत ने मिश्रा को तीसरी बार सेवा विस्तार दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर 12 दिसंबर को केंद्र और अन्य से जवाब मांगा था. आधिकारिक आदेश के अनुसार, केंद्र सरकार ने भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) अधिकारी के पद पर मिश्रा को एक साल के लिए तीसरा सेवा विस्तार दिया था. सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि 1984 बैच के आईआरएस अधिकारी 18 नवंबर, 2023 तक पद पर रहेंगे.
मिश्रा (62) को पहली बार 19 नवंबर, 2018 को दो साल के लिए ईडी का निदेशक नियुक्त किया गया था. बाद में, 13 नवंबर, 2020 को केंद्र सरकार ने एक आदेश के माध्यम से उनके नियुक्ति पत्र को पूर्वव्यापी प्रभाव से संशोधित किया और उनके दो साल के कार्यकाल को तीन साल में बदल दिया. सरकार ने पिछले साल एक अध्यादेश जारी किया था जिसके तहत प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) प्रमुखों का कार्यकाल दो साल की अनिवार्य अवधि के बाद तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है.
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