नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका दायर कर महात्मा गांधी की हत्या के मामले की जांच फिर से कराने की मांग करने वाले शख्स से शुक्रवार को कुछ अहम सवाल किए. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से विस्तार से यह बताने को कहा कि वह किस हैसियत से इस मुद्दे को उठा रहे हैं और इसमें इतनी देरी क्यों की गई?


शीर्ष अदालत ने साफ कर दिया कि वह मामले में शामिल व्यक्ति के कद को देखकर नहीं, बल्कि कानून के हिसाब से फैसला करेंगे. न्यायमूर्ति एस ए बोबडे़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह इस मामले से जुड़े व्यक्ति की महानता से प्रभावित नहीं हों, क्योंकि मुद्दा यह है कि इस मामले में कोई साक्ष्य उपलब्ध है कि नहीं.


पीठ ने कहा, ‘‘आपको (याचिकाकर्ता को) दो-तीन बेहद अहम बिंदुओं के जवाब देने है. एक तो देरी का मसला है. दूसरा हैसियत का मुद्दा है. तीसरा यह तथ्य है कि देरी के कारण घटना से जुड़े एक-एक साक्ष्य खत्म हो गए हैं.’’ न्यायालय ने यह भी कहा कि मामले से जुड़े लगभग सभी गवाहों की मृत्यु हो चुकी है.


कोर्ट ने मुंबई में रहने वाले शोधकर्ता और अभिनव भारत के ट्रस्टी डॉ. पंकज फडणीस की ओर से दायर याचिका की सुनवाई कर रहा था. फडणीस ने कई आधार बताते हुए महात्मा गांधी की हत्या की जांच फिर से कराने की मांग की है. उनका दावा है कि यह इतिहास के ऐसे सबसे बड़े मामलों में से है जिन्हें रफा-दफा कर दिया गया.


इस बीच, फडणीस ने वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेंद्र शरण की ओर से दाखिल रिपोर्ट पर अपना जवाब दायर करने के लिए वक्त मांगा. शरण को इस मामले में न्याय मित्र नियुक्त किया गया है.


कोर्ट में दाखिल अपनी रिपोर्ट में शरण ने कहा है कि महात्मा गांधी की हत्या की जांच फिर से कराने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि हत्या के पीछे की साजिश और गोलियां चलाने वाले हमलावर नाथूराम गोडसे की पहचान पहले ही बहुत अच्छी तरह कायम हो चुकी है. पीठ ने न्याय मित्र की रिपोर्ट पर जवाब देने के लिए याचिकाकर्ता को चार हफ्ते का वक्त दिया. सुनवाई के दौरान, पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि मुद्दा यह है कि अभी कोई स्वीकार्य साक्ष्य उपलब्ध है कि नहीं.


पीठ ने कहा, ‘‘इस मामले से जुड़े व्यक्ति की महानता से प्रभावित नहीं हों. मामला यह है कि कोई साक्ष्य उपलब्ध है कि नहीं . अदालत इस मामले से जुड़े व्यक्ति के कद को देखकर नहीं, बल्कि कानून और नियम के मुताबिक काम करेगी.’’ न्यायालय में दाखिल अपनी रिपोर्ट में शरण ने कहा है कि इन दावों का कोई ठोस आधार नहीं है कि ब्रिटिश विशेष खुफिया इकाई की ‘फोर्स 136’ के नाम से मौजूदगी थी और हत्याकांड में इसकी कथित भूमिका थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि मामले के दस्तावेजों से साबित हुआ है कि एक स्वतंत्र जांच में नाथूराम विनायक गोडसे और दूसरे आरोपियों के अपराधों पर फैसला किया गया था और न्याय किया गया.


हिंदू राष्ट्रवाद की वकालत करने वाले दक्षिणपंथी गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में गोली मारकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी. इस मामले में दोषी करार दिए गए गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 को मौत की सजा दी गई.