सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (10 सितंबर, 2024) को पंजाब सरकार से सवाल किया कि जब एक सरकार कोई कानून लाती है और दूसरी सरकार उसे निरस्त करे तो तब कोई अनिश्चितता नहीं होती है. कोर्ट ने यह सवाल एक विश्वविद्यालय को लेकर चल रही सुनवाई के दौरान पूछा. 


जस्टिस भूषण रामाकृष्णन गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. बेंच ने यह सवाल पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने खालसा विश्वविद्यालय (निरसन) अधिनियम, 2017 को रद्द करने के अनुरोध वाली याचिका खारिज कर दी थी.


बेंच ने पंजाब की ओर से पेश वकील से पूछा, 'क्या तब अनिश्चितता नहीं होगी जब एक राजनीतिक दल सत्ता में आने पर विश्वविद्यालय के लिए कानून बनाए और जब कोई अन्य राजनीतिक दल सत्ता में आए तो वह उसे (अधिनियम को) निरस्त कर दे?' बेंच ने याचिकाकर्ताओं और राज्य सरकार की ओर से पेश वकीलों की दलीलें सुनने के बाद याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.


खालसा विश्वविद्यालय और खालसा कॉलेज चैरिटेबल सोसाइटी ने हाईकोर्ट के नवंबर 2017 के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016 के तहत खालसा विश्वविद्यालय का गठन किया गया और सोसायटी द्वारा पहले से चलाए जा रहे फार्मेसी कॉलेज, शिक्षा कॉलेज और महिला कॉलेज को विश्वविद्यालय में मिला दिया गया.


अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि 30 मई, 2017 को खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम को निरस्त करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया गया था और तत्पश्चात निरसन अधिनियम, 2017 पारित किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलीलें पेश किए जाने के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने कहा कि निरसन अधिनियम मनमाना है और पूरी कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) का उल्लंघन करती है. पंजाब की ओर से पेश वकील ने कहा कि इसमें कुछ भी मनमाना नहीं है.


राज्य के वकील ने कहा कि तत्कालीन राज्य सरकार ने 2016 में कानून बनाया था और 2017 में नई सरकार के सत्ता में आने के बाद उसने इस कानून को निरस्त कर दिया. शिरोमणि अकाली दल-भाजपा सरकार ने 2016 में खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम बनाया था और कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इसे निरस्त कर दिया था. उन्होंने कहा कि न तो किसी छात्र और न ही विश्वविद्यालय के किसी शिक्षक ने 2017 के अधिनियम को चुनौती दी है. राज्य के वकील ने कहा कि छात्रों के हित किसी भी तरह से प्रभावित नहीं हुए हैं.


बेंच ने कहा, 'यह पूरी तरह से कानून का सवाल है. हमें इसमें जाने की जरूरत नहीं है कि प्रवेश दिए गए या नहीं.' कोर्ट ने कहा, 'आदेश के लिए सुनवायी समाप्त की जाती है.' पंजाब की तत्कालीन सरकार ने खालसा कॉलेज, अमृतसर के विरासत चरित्र की रक्षा के उद्देश्य से खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम को निरस्त करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया था.


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