SC ने पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपा ‘तीन तलाक’ का मामला, 11 मई से होगी सुनवाई
नई दिल्ली: मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला कानूनन वैध हैं या नहीं ? सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इस पर सुनवाई करेगी. 11 मई से इस मसले पर विस्तृत सुनवाई शुरू होगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर 2015 में संज्ञान लिया था. आज चीफ जस्टिस जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसे पांच जजों की संविधान पीठ को सौंप दिया है.
आज कोर्ट में मौजूद एटॉर्नी जनरल समेत कुछ वरिष्ठ वकीलों ने गर्मियों की छुट्टी में सुनवाई पर एतराज़ जताया. लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा, "कोर्ट में आने वाले अहम मसले कई सालों तक चलते रहते हैं. मेरे हिसाब से इन्हें जल्द निपटाने का यही तरीका है. मैं और साथी जज छुट्टी में काम करने को तैयार हैं. आप नहीं करना चाहते तो फिर हम भी छुट्टी मनाएंगे." इस पर कोर्ट में मौजूद तमाम पक्षों ने 11 मई से होने वाली सुनवाई के लिए सहमति जताई.
गौरतलब है कि कोर्ट ये पहले ही साफ कर चुका है कि उसकी सुनवाई मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर है. अदालत यूनिफॉर्म सिविल कोड के मसले पर विचार नहीं करेगी. 2015 में मामले पर संज्ञान लेते वक्त कहा था, "हमें ये देखना होगा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में मौजूद तीन तलाक, बहुविवाह और हलाला जैसे प्रावधान संविधान की कसौटी पर खरे उतरते हैं या नहीं? संविधान हर नागरिक को बराबरी का अधिकार देता है. कहीं इस तरह की व्यवस्था मुस्लिम महिलाओं को इस हक से वंचित तो नहीं करती?"
कोर्ट में मामला शुरू होने के बाद अब तक शायरा बानो, नूरजहां नियाज़, आफरीन रहमान, फरहा फैज़ और इशरत जहाँ नाम की महिलाएं तीन तलाक की व्यवस्था खत्म करने के लिए याचिका दाखिल कर चुकी हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा ए हिंद जैसे संगठनों ने भी अर्ज़ी दायर कर अदालत में चल रही कार्रवाई बंद करने की मांग की है. इन संगठनों की दलील है पर्सनल लॉ एक धार्मिक मसला है. कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए.
केंद्र सरकार ने मसले पर स्पष्ट स्टैंड लेते हुए कहा है कि पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है. उसके कुछ प्रावधान महिलाओं के बराबरी और सम्मान के साथ जीने के अधिकार का हनन करते हैं. इन्हें असंवैधानिक करार देकर रद्द कर दिया जाना चाहिए.
केंद्र ने अदालत को सुझाव दिया है कि वो इन सवालों पर सुनवाई करे:-
- क्या तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला संविधान के अनुच्छेद 25 (1) यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में आते हैं?
- क्या अनुच्छेद 25 (1) का महत्व अनुच्छेद 14 (बराबरी का अधिकार) और 21 (सम्मान से जीने का अधिकार) से ज़्यादा है?
- क्या पर्सनल लॉ के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 13 के दायरे में आते हैं? (अनुच्छेद 13 के मुताबिक कोई भी कानून जो संविधान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता, उसे रद्द कर देना चाहिए)
- क्या तीन तलाक, बहुविवाह और हलाला भारत की तरफ से दस्तखत किए गए मानवाधिकार से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौतों के मुताबिक हैं?
इस मामले के दूसरे पक्षों ने भी अपनी तरफ से सुझाव दिए हैं. कोर्ट ने कहा है कि वो किसी भी व्यक्तिगत मामले पर सुनवाई नहीं करेगा. उसकी सुनवाई बड़े सवालों का जवाब तलाशने तक सीमित रहेगी.