Supreme Court On Domestic Violence: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (3 जुलाई) को उस याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया, जिसमें पुरुषों के लिए राष्ट्रीय आयोग की मांग की गई थी. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कोई भी आत्महत्या नहीं करना चाहता. हर मामले में अलग परिस्थितियां होती हैं. यह विषय ऐसा नहीं है जिसमें कानून में कोई व्यवस्था ही नहीं है. 


दरअसल, अधिवक्ता महेश कुमार तिवारी ने यह याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि शादीशुदा मर्दो में आत्महत्या करने के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है. साथ ही याचिका में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) का आंकड़ा दिया गया है. याचिका में ये भी मांग की गई थी कि पुरुषों की समस्याओं को समझने और उनके हल के लिए एक आयोग का गठन किया जाना चाहिए.


याचिका में NCRB आंकड़ों का दिया गया था हवाला


महेश कुमार तिवारी ने याचिका में एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा था कि वर्ष 2021 में पारिवारिक समस्याओं के कारण तकरीबन 33.2 फीसदी पुरुषों ने और विवाह संबंधी वजहों के चलते 4.8 प्रतिशत पुरुषों ने अपना जीवन खत्म कर लिया था. याचिका में विवाहित पुरुषों की ओर से आत्महत्या के मुद्दे से निपटने और घरेलू हिंसा से पीड़ित पुरुषों की शिकायतों पर कार्रवाई करने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है.


याचिका में केंद्र को गृह मंत्रालय के जरिये पुलिस विभाग को यह निर्देश देने का अनुरोध भी किया गया है कि घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों की शिकायतें तत्काल स्वीकार की जाएं.इसके साथ ही याचिका में मांग की गई कि घरेलू हिंसा और विवाह संबंधी मुद्दों से पीड़ित विवाहित पुरुषों की आत्महत्या के मुद्दे पर भारत के विधि आयोग को एक निर्देश/सिफारिश जारी किया जाए और राष्ट्रीय जैसे मंच का गठन करने के लिए आवश्यक रिपोर्ट तैयार करें.


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