Supreme Court PIL on Preamble: सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें संविधान की प्रस्तावना में लिखे शब्दों का अर्थ स्पष्ट करने की मांग की गई थी. बुधवार, 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को लेकर कहा, "यह हमारा काम नहीं है. आप खुद अर्थ समझिए."
दरअसल, याचिकाकर्ता का कहना था कि प्रस्तावना में कई शब्द हैं, जिनकी परिभाषा साफ नहीं है. जैसे उसे 'बंधुत्व' शब्द का वास्तविक अर्थ समझ नहीं आता. इस याचिका की सुनवाई न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की खंडपीठ कर रही थी.
समझ नहीं आती आपकी दलीलें: सुप्रीम कोर्ट
याचिकाकर्ता शिवम मिश्रा ने दलील दी थी कि वह 'भाईचारा' जैसे शब्दों का मतलब नहीं समझते है और अगर राहत नहीं दी गई तो उन्हें दुख होगा. हालांकि, कोर्ट ने कहा कि वह याचिकाकर्ता की दलील को नहीं समझ पाई. अदालत ने कहा, "आपकी दलीलें समझ में नहीं आतीं हैं. आपने कहा है कि अगर हम राहत नहीं देते हैं तो आपको दुख होगा."
क्या है संविधान की प्रस्तावना में बंधुत्व के मायने ?
'बंधुत्व' का अर्थ है- भाईचारे की भावना. प्रस्तावना में बताया गया है कि ‘बंधुत्व’ के दायरे में दो बातों को सुनिश्चित करना होगा. पहला व्यक्ति का सम्मान और दूसरा देश की एकता और अखंडता (‘अखंडता’ शब्द को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया है)
संविधान सभा की प्रारूप समिति के एक सदस्य के. एम. मुंशी के अनुसार, 'व्यक्ति की गरिमा' का अर्थ यह है कि संविधान न केवल वास्तविक रूप से भलाई तथा लोकतांत्रिक तंत्र की मौजूदगी सुरक्षित करता है बल्कि यह भी मानता है कि हरेक व्यक्ति का व्यक्तित्त्व पवित्र है. इस शब्द को लेकर संविधान सभा में कई चर्चाओं में जिक्र भी आया है.
डॉ भीम राव अंबेडकर ने भी अपने चर्चित भाषण ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ ‘भ्रातृत्त्व’ या ‘बंधुत्व’ पर जोर दिया था.
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