Supreme Court News: लव जिहाद को लेकर यूपी की बरेली कोर्ट की टिप्पणियों के खिलाफ याचिका सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि फैसला एक आपराधिक मामले पर आया था. याचिकाकर्ता का उससे कोई संबंध नहीं था. इस तरह के मामले जनहित याचिका के रूप में नहीं सुने जा सकते.


बरेली कोर्ट ने सुनाई थी उम्रकैद की सजा


केरल के कोझीकोड के रहने वाले अनस ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल कर अक्टूबर में आए बरेली कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया था. इस फैसले में बरेली के एडिशनल सेशंस जज रवि कुमार दिवाकर ने छात्रा को धोखा देकर शादी करने वाले मोहम्मद आलिम को उम्रकैद की सजा दी थी. साथ ही, लव जिहाद को लेकर कई सख्त टिप्पणियां भी की थीं.


याचिकाकर्ता ने इन टिप्पणियों को हटाने की मांग की थी, लेकिन जस्टिस ऋषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी ने याचिका को सुनने से मना कर दिया. जजों ने कहा कि याचिकाकर्ता का मामले से कोई लेना-देना नहीं है. इस तरह से किसी आपराधिक मुकदमे में निचली अदालत के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती.


क्या था मामला?


बरेली में कंप्यूटर कोचिंग करने वाली छात्रा का आरोप था कि पढ़ाई के दौरान जादोपुर गांव के रहने वाले आलिम से उसकी मुलाकात हुई. आलिम ने अपना नाम आनंद बताया. वह हाथ में कलावा भी बांधता था. शादी का झांसा देकर उसने मंदिर में छात्रा की मांग भर दी. कई बार शारिरिक शोषण किया. उसका गर्भपात भी करवाया. बाद में अपने गांव ले जाकर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया. इसमें उसका पिता साबिर भी शामिल रहा. पीड़िता के साथ मारपीट भी की गई.


अक्टूबर में दिए फैसले में बरेली की फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज रवि कुमार दिवाकर ने आलिम को उम्रकैद की सजा दी. साथ ही उसके पिता साबिर को भी दो वर्ष कैद की सजा दी. कोर्ट ने यह भी कहा कि विदेशी फंडिंग से लव जिहाद की घटनाएं हो रही हैं. इसका मकसद एक विशेष मजहब की संख्या बढ़ा कर वर्चस्व कायम करना है. अगर भारत सरकार ने रहते लव जिहाद के जरिए अवैध धर्मांतरण पर रोक नहीं लगाई, तो भविष्य में देश को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.


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