Supreme Court News: एससी/एसटी आरक्षण का लाभ आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के बच्चों को न देने की मांग सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण को लेकर नीति बनाना सरकार का काम है. कोर्ट इसे तय नहीं करेगा. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में एससी/एसटी में भी क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू करने और ऐसा न होने तक मध्य प्रदेश में आईएएस/आईपीएस अधिकारियों के बच्चों को आरक्षण से वंचित करने की मांग की गई थी.


IAS/IPS के बच्चों को आरक्षण से बाहर करने की मांग


मध्य प्रदेश के रहने वाले याचिकाकर्ता संतोष मालवीय ने वकील मृगांक प्रभाकर के जरिए याचिका दाखिल की थी. इसमें कहा गया था कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब बनाम देविंदर सिंह केस के फैसले में अनुसूचित जाति/जनजाति आरक्षण में उपवर्गीकरण की अनुमति दी थी. कोर्ट ने कहा था कि इन वर्गों में भी जो जातियां ज्यादा पिछड़ी रह गई हैं, उन तक आरक्षण का लाभ पहुंचाने के लिए उपवर्गीकरण जरूरी है. कुछ राज्यों ने इस फैसले के मुताबिक कदम उठाने शुरू किए हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में अब तक ऐसा नहीं हो रहा है.


याचिकाकर्ता की तरफ से मांग की गई कि सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश सरकार को अनुसूचित जाति/जनजाति में से क्रीमी लेयर की पहचान करने और उसे सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में आरक्षण न देने की नीति बनाने को कहे. जब तक राज्य सरकार ऐसी नीति नहीं बना लेती, तब तक राज्य में कम से कम IAS/IPS के बच्चों को आरक्षण न दिया जाए.


'आरक्षण देना सरकार का फैसला'


गुरुवार को यह मामला जस्टिस बीआर गवई और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच में सुनवाई के लिए लगा. बेंच के अध्यक्ष जस्टिस गवई ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, "पिछले साल 7 जजों की बेंच ने यही फैसला दिया था कि एससी/एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण किया जा सकता है, लेकिन हमने इसे अनिवार्य नहीं बनाया था. इस बारे में फैसला सरकारों पर छोड़ा गया था." जस्टिस गवई ने कहा कि किसे आरक्षण देना है या किसे उससे बाहर करना है, यह एक नीतिगत विषय है. इसका फैसला सरकार और विधायिका पर ही छोड़ना सही है.


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