नई दिल्ली: हिंदुओं के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दाखिल एक याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की दलील थी कि देश के नौ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, और उन्हें वहां अल्पसंख्यकों के लिए तय कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है. वहां की बहुसंख्यक आबादी सारे लाभ ले लेती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दखल देने से मना करते हुए कह दिया कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट में अपनी बात रखें.


वकील और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की दलील थी कि लद्दाख में हिंदू आबादी एक फीसदी है. मिजोरम में 2.75 फीसदी, लक्ष्यदीप में 2.77 फीसदी, कश्मीर में चार फीसदी, नागालैंड में 8.74 फीसदी, मेघालय में 11.52 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 29.24 फीसदी, पंजाब में 38.49 और मणिपुर में 41.29 फीसदी हिंदू आबादी है, लेकिन फिर भी सरकारी योजनाओं को लागू करते समय उन्हें अल्पसंख्यकों के लिए तय कोई लाभ नहीं मिलता.


याचिका में 2002 के टीएमए पाई बनाम कर्नाटक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया गया था. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी इलाके में जो लोग संख्या में कम हैं उन्हें संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अपने धर्म और संस्कृति के संरक्षण के लिए स्कूल, कॉलेज खोलने का हक है. उपाध्याय का कहना था कि जिस तरह पूरे देश में अल्पसंख्यक चर्च संचालित स्कूल या मदरसा खोलते हैं, वैसी इजाजत हिंदुओं को भी नौ राज्यों में मिलनी चाहिए. इन स्कूलों को विशेष सरकारी संरक्षण मिलना चाहिए.


याचिका में यह सवाल भी उठाया गया था कि अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पर केंद्र सरकार की तरफ से बनाई जाने वाली हजारों करोड़ रुपए की योजनाओं का लाभ नौ राज्यों में हिंदुओं को मिलना चाहिए, लेकिन वहां के संसाधनों पर पहले से काबिज स्थानीय बहुसंख्यक समुदाय अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं का लाभ भी हड़प लेता है.


इससे पहले 2017 में भी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में यह मसला रखा था, तब कोर्ट ने उन्हें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में अपनी बात रखने को कहा था. आयोग ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया. जिसके बाद याचिकाकर्ता दोबारा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. अब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हाईकोर्ट जाने को कह दिया है. उपाध्याय ने एबीपी न्यूज से कहा कि नौ राज्यों में हाईकोर्ट जा पाना उनके लिए बहुत मुश्किल होगा. फिर भी वह न्याय की इस लड़ाई को जारी रखने की पूरी कोशिश करेंगे.


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