नई दिल्लीः अवैध धर्मपरिवर्तन के खिलाफ दाखिल एक याचिका को सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने आज मना कर दिया. याचिका में कहा गया था कि देश में गरीब, अशिक्षित लोगों को काला जादू और अन्धविश्वास से डरा कर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है. इस पर रोक लगनी चाहिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका को सुनने से मना कर दिया कि इसे प्रचार के मकसद से दाखिल किया गया है.
बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया था पूरे देश में तरह तरह के अवैध हथकंडे अपना कर लोगों पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाया जा रहा है. इनमें से एक है अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली हरकतें. भोले-भाले लोगों को झूठे चमत्कार दिखा कर ठगा जा रहा है. इसका शिकार सबसे अधिक अनुसूचित जाति/जनजाति के लोग हो रहे हैं. इसलिए, कोर्ट केंद्र सरकार को यह निर्देश दे कि वह इस समस्या से निपटने के लिए कानून बनाने सहित दूसरे ज़रूरी कदम उठाए.
याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि संविधान नागरिकों को अपने धर्म से जुड़ी अनिवार्य बातों के पालन का मौलिक अधिकार देता है. लेकिन झूठा चमत्कार दिखाना और काला जादू करना किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं कहा जा सकता. ऐसा करने का उद्देश्य सिर्फ यही होता है कि शैक्षिक रूप से पिछड़े लोगों पर धर्म परिवर्तन जा दबाव बनाया जा सके. इस तरह की सभाएं और कार्यक्रम करने वाले लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए.
आज यह मामला जस्टिस रोहिंटन नरीमन की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच में लगा. जज याचिका से सहमत नहीं थे. जस्टिस नरीमन ने कहा कि संविधान लोगों को अपने धर्म के प्रचार का अधिकार देता है. यह अधिकार भी देता है कि 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को अपना धर्म चुनने का अधिकार संविधान देता है.
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को यह समझाने की कोशिश की कि याचिका धर्म के प्रचार या स्वेच्छा से धर्म चुनने के खिलाफ नहीं है. लेकिन जजों ने मामला आगे सुनने से मना कर दिया. इसके बाद याचिकाकर्ता ने कोर्ट से याचिका वापस लेने का आग्रह किया. इसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया. याचिकाकर्ता ने एक बयान जारी कर कहा है कि अब वह इस मसले पर केंद्रीय गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और लॉ कमीशन को ज्ञापन सौंपेंगे.
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