विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को प्रलोभन देने के लिए राजनीतिक दलों पर कार्रवाई की मांग से जुड़ी एक याचिका को सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता की मंशा संदिग्ध है.
उसने व्यापक मुद्दा उठाने की जगह सिर्फ कुछ पार्टियों को निशाना बनाने के लिए याचिका दाखिल की है. याचिकाकर्ता ने यूपी विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस के सभी उम्मीदवारों को अयोग्य करार देने की मांग की थी. साथ ही पंजाब में आप के उम्मीदवारों को भी अयोग्य करार देने की मांग याचिका में की गई थी.
चुनाव में मुफ्त चीजों की घोषणा है भ्रष्ट तरीका-याचिकाकर्ता
हिंदू सेना के उपाध्यक्ष सुरजीत सिंह यादव ने याचिका दायर कर मतदाताओं को मुफ्त की चीज़ें देने की घोषणा को भ्रष्ट तरीका बताया था. याचिकाकर्ता ने कहा था कि यह जनप्रधिनिधित्व कानून की धारा 123(1)(A) के विरुद्ध है. ऐसा करने वाली पार्टियों के ऊपर केस दर्ज होना चाहिए. उनके प्रत्याशियों को अयोग्य करार दिया जाना चाहिए. याचिका में चुनाव आयोग के अलावा कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीएसपी और आम आदमी पार्टी को प्रतिवादी बनाया गया था.
याचिका के पीछे है छुपा हुआ मकसद
बुधवार को याचिकाकर्ता के वकील बरुन सिन्हा के ने कोर्ट से मामला जल्द सुनने का अनुरोध किया था. इसे मानते हुए कोर्ट ने आज मामले को सूचीबध्द किया. मामला चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस ए एस बोपन्ना और हिमा कोहली की बेंच में लगा. सुनवाई की शुरुआत में ही चीफ जस्टिस ने कहा कि वह और बेंच के बाकी 2 सदस्य मानते हैं कि इस याचिका के पीछे छुपा हुआ मकसद है. इसे कुछ पार्टियों को नुकसान पहुंचाने के लिए दाखिल किया गया है. ऐसी याचिका को भारी हर्जाने के साथ खारिज किया जाना चाहिए.
सुनने लायक नहीं है याचिका
याचिकाकर्ता के वकील ने बचाव करते हुए कहा कि उनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. हिंदू सेना एक एनजीओ है. याचिका चुनावी प्रक्रिया की सफाई की नीयत से दाखिल की गई है. जजों ने कहा कि ऐसा नहीं है कि वह इस विषय को नहीं सुनना चाहते. इसी मसले पर पिछले महीने वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस भी जारी किया गया है. लेकिन यह याचिका सुनने लायक नहीं है. याचिकाकर्ता के वकील ने राजनीतिक पार्टियों का नाम हटा कर याचिका फिर से दाखिल करने की अनुमति मांगी. लेकिन कोर्ट ने इससे मना कर दिया.