झूठे केस में फंसे लोगों को मुआवजा देने की व्यवस्था बनाने से SC ने मना किया, कहा- यह सरकार को देखना चाहिए
2018 में सरकार को सौंपी गई इस रिपोर्ट में झूठे मुकदमे में फंसाए गए लोगों को मुआवजा देने की सिफारिश की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 23 मार्च को इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.
Supreme Court On False Cases: झूठे आपराधिक मुकदमे में फंसाए गए लोगों को मुआवजा (Compensation) देने की व्यवस्था बनाने का आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि यह सरकार के देखने का विषय है. बीजेपी नेता कपिल मिश्रा और वकील अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) की याचिका में 20 साल तक रेप के झूठे आरोप जेल में रहने वाले यूपी के विष्णु तिवारी का उदाहरण दिया गया था. इस तरह के लोगों को मुआवजा देने की मांग की गई थी.
याचिकाकर्ताओं ने लॉ कमीशन की 277वीं रिपोर्ट का भी हवाला दिया था. 2018 में सरकार को सौंपी गई इस रिपोर्ट में झूठे मुकदमे में फंसाए गए लोगों को मुआवजा देने की सिफारिश की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 23 मार्च को इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.
विषय को नहीं बनाना चाहते जटिल, सरकार करे फैसला
केंद्र सरकार की तरफ से दाखिल जवाब में यह बताया गया था कि उसने लॉ कमीशन की रिपोर्ट पर राज्यों से राय मांगी है. अभी तक 16 राज्यों ने जवाब दिया है. जस्टिस यू यू ललित और एस रविंद्र भाट की बेंच ने केंद्र के जवाब को पढ़ने के बाद कहा कि यह पूरा विषय सरकार की तरफ से विचार करने का है. सुप्रीम कोर्ट अपनी तरफ से आदेश देकर इसे जटिल नहीं बनाना चाहता.
याचिकाकर्ता के लिए पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने जजों को आश्वस्त करने की कोशिश की. लेकिन कोर्ट का कहना था कि मुआवजे की व्यवस्था बनाना निचली अदालत में मुकदमे की प्रक्रिया को और जटिल बना देगा. जजों ने कहा कि अभी भी इस बात की व्यवस्था है कि कोई व्यक्ति झूठे मुकदमे के लिए सरकार से मुआवजा मांग सकता है.
मुआवजा देने में हैं कई कानूनी जटिलताएं
बेंच ने यह भी कहा कि अगर निचली अदालत किसी को बरी करती है, तो इसका मतलब यह नहीं कि हाई कोर्ट भी उसी फैसले को बरकरार रखे. ऐसे में निचली अदालत से बरी होने के बाद मुआवजा कैसे दिया जा सकता है?
जजों ने यह भी कहा कि मुकदमे में कई लोग सबूतों के अभाव में भी बरी होते हैं. हर केस में बरी होने का मतलब यह नहीं होता कि मुकदमा झूठा था. विजय हंसारिया ने कहा कि यह देश भर के लोगों को प्रभावित करने वाला जनहित के मुद्दा है. इस पर बेंच ने कहा कि यह निश्चित रूप से जनहित के मुद्दा है. लेकिन इसके लिए सुप्रीम कोर्ट अपनी प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं करेगा. बेहतर हो कि सरकार इसे देखे.
20 साल तक जेल में रहे विष्णु तिवारी
पिछले साल यूपी के ललितपुर जिले के विष्णु तिवारी का मामला बहुत चर्चा में रहा था. उसी को आधार बनाते हुए यह याचिकाएं दाखिल की गई थीं. विष्णु पर 2000 में उन्हीं के गांव की लड़की ने रेप का आरोप लगाया था. लड़की अनुसूचित जाति की थी. इसलिए, विष्णु पर रेप के अलावा एससी/एसटी एक्ट की धाराएं भी लगाई गईं. उसे कुछ दिनों बाद निचली अदालत ने दोषी करार दिया.
जनवरी 2021 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पाया कि मुकदमा झूठा था. इस बीच विष्णु तिवारी (Vishnu Tiwari) अपने जीवन के 20 अनमोल साल जेल में बिता चुके थे. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि देश भर में ऐसे हज़ारों लोग हैं. मौजूदा कानून उन्हें न्याय दिलाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.
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