Euthanasia: 'ये केस तो...', बेटे के लिए मां-बाप ने मांगी इच्छामृत्यु तो SC ने कह दी बड़ी बात! जानें, पूरा माजरा
Supreme Court On Euthanasia: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निष्क्रिय इच्छामृत्यु का मामला नहीं है और सक्रिय इच्छामृत्यु अवैध है. चोट लगने के बाद मरीज बेहाश है.
![Euthanasia: 'ये केस तो...', बेटे के लिए मां-बाप ने मांगी इच्छामृत्यु तो SC ने कह दी बड़ी बात! जानें, पूरा माजरा Supreme Court refuses to permit euthanasia for aged couple comatose son Know details Euthanasia: 'ये केस तो...', बेटे के लिए मां-बाप ने मांगी इच्छामृत्यु तो SC ने कह दी बड़ी बात! जानें, पूरा माजरा](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2024/08/07/e1124ffd017163cc40ac2096d2f2885117230245183621074_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Euthanasia Case: एक बुजुर्ग दम्पति की अपने 30 साल बेटे के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु मांग रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (20 अगस्त) को याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. जिस शख्स के लिए इच्छामृत्यु की मांग की जा रही है वो एक इमारत की चौथी मंजिल से गिरने के बाद 11 सालों से घर में कोमा में पड़ा है.
भारत के चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ माता-पिता की दुर्दशा से काफी दुखी थी. इस बुजुर्ग दंपत्ति ने अदालत से कहा कि उन्होंने अपने बेटे की देखभाल में अपनी बचत और इच्छाशक्ति दोनों ही खर्च कर दी है. चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "यह बहुत ही कठिन मामला है."
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
चीफ जस्टिस ने कहा कि हरीश राणा नाम के शख्स, जिसे 2013 में गिरने के कारण सिर में गंभीर चोटें आई थीं, वेंटिलेटर या किसी भी तरह के जीवन रक्षक उपकरण पर नहीं था. वह अभी भी खाना नली के जरिए से पोषण ले रहा था. उसे छोड़ देना निष्क्रिय इच्छामृत्यु नहीं होगी, क्योंकि वह जीवित रहने के लिए किसी बाहरी उपकरण पर निर्भर नहीं था. निष्क्रिय इच्छामृत्यु एक जानबूझकर किया गया काम है जिसमें किसी मरीज को बचाने के लिए जरूरी जीवन समर्थन या उपचार रोककर या वापस लेकर मरने दिया जाता है.
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का मामला ये नहीं है कि उसे मशीनों के जरिए जीवित रखा जा रहा है. वह शायद बिना किसी एक्स्ट्रा बाहरी सहायता के खुद को जीवित रखने में सक्षम है. इसलिए ये इच्छामृत्यु का मामला नही बनता है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
पीठ ने माता-पिता के वकील से कहा, "इस मामले में, यह सक्रिय इच्छामृत्यु के समान होगा, जो कानूनी नहीं है." दिल्ली हाई कोर्ट की ओर से उनके बेटे की इच्छामृत्यु की याचिका पर विचार करने के लिए मेडिकल बोर्ड गठित करने से इनकार करने के बाद दम्पति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, "हाईकोर्ट का फैसला सही था. कोई भी डॉक्टर ऐसा करने के लिए राजी नहीं होगा."
अदालत ने मरीज को इलाज और देखभाल के लिए सरकारी अस्पताल या किसी अन्य समान स्थान पर ट्रांसफर करने की संभावना का पता लगाने के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की सहायता मांगी. अदालत ने आदेश में दर्ज किया, "अदालत इस बात को ध्यान में रखती है कि माता-पिता अब वृद्ध हो चुके हैं और अपने बेटे की देखभाल नहीं कर सकते हैं, जो इतने सालों से बिस्तर पर है और अगर निष्क्रिय इच्छामृत्यु के अलावा कोई मानवीय समाधान मिल सकता है तो हम इस पर विचार करेंगे."
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![ABP Premium](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)