नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जजों को केस आवंटित करने की प्रक्रिया में बदलवा करने से इनकार कर दिया है. यानी केस आवंटित करने का अधिकार चीफ जस्टिस के पास ही रहेगा. पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने मांग की थी कि केस आवंटित करने का अधिकार सिर्फ चीफ जस्टिस को नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा था कि पांच वरिष्ठतम जजों को मिलकर मुकदमों का आवंटन करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने शांति भूषण की याचिका खारिज करते हुए ये फैसला सुनाया है. इससे पहले अप्रैल में भी इल मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका खारिज की थी और कहा था कि भारत के चीफ जस्टिस अपने 'समकक्षों में प्रथम' हैं और मुकदमों के आवंटन और उनकी सुनवाई के लिए पीठ (बेंच) के गठन का संवैधानिक अधिकार उन्हीं को है. याचिका में मुकदमों के तर्कपूर्ण, पारदर्शी आवंटन और उनकी सुनवाई के लिए पीठों के गठन के संबंध में दिशा-निर्देश तय करने की मांग की गई थी.
केस आवंटित करने पर हुआ था बड़ा विवाद
बता दें कि इसी साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के चार तत्कालीन वरिष्ठतम जजों ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के काम करने के तरीके पर भी सवाल उठाया था और अपनी बात रखने के लिए मीडिया से मुखातिब हुए थे. इन जजों ने अपनी चिट्ठी में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के मनमाने ढ़ंग से काम करने के रवैया पर अपनी नाराज़गी जताई थी. इन चार जजों की तरफ से कहा गया था कि जूनियर जजों को अहम केस दिए जाते हैं. इस विवाद में सोहराबुद्दीन शेख़ एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे सीबीआई की विशेष अदालत के जज बीएच लोया की मौत के केस की भी चर्चा हुई थी.
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