Supreme Court On Periods Leave: महिला कर्मचारियों और छात्राओं को हर महीने मासिक धर्म (पीरियड्स) से जुड़ी तकलीफों के लिए छुट्टी देने का प्रावधान बनाने पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि यह एक नीतिगत मसला है. इसके लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय को ज्ञापन दिया जाना चाहिए. शैलेंद्र मणि त्रिपाठी नाम के वकील की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया था कि महिलाओं को गर्भावस्था के लिए अवकाश मिलता है, लेकिन मासिक धर्म के लिए नहीं.
वकील ने आगे कहा कि यह भी महिलाओं के शारिरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा एक अहम विषय है. बिहार समेत कुछ राज्यों ने महीने में 2 दिन छुट्टी का प्रावधान बनाया है. हर राज्य को ऐसे नियम बनाने का निर्देश दिया जाए या फिर केंद्रीय स्तर पर इसके लिए कानून पारित हो.
'सरकार विचार कर सकती है'
याचिका में यूनाइटेड किंगडम, जापान, ताइवान जैसे कई देशों में महिलाओं को माहवारी के दौरान छुट्टी देने के लिए बने कानूनों का हवाला भी दिया गया था. हालांकि, चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जे बी पारडीवाला की बेंच ने सुनवाई की शुरुआत में ही यह कह दिया कि यह एक नीतिगत विषय है, जिस पर सरकार और संसद विचार कर सकते हैं.
कानून की छात्रा ने कोर्ट में दिया ये तर्क
चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह महिला और बाल कल्याण मंत्रालय को ज्ञापन दें. मामले में खुद को भी पक्ष बनाए जाने की मांग कर रही कानून की एक छात्रा की तरफ से कहा गया कि इस तरह का नियम बनाने से महिलाओं को नौकरी पाने में कठिनाई होगी.
चीफ जस्टिस ने छात्रा को पक्ष बनाने से इनकार कर दिया. हालांकि, उन्होंने उसकी दलील पर सहमति जताई. चीफ जस्टिस ने कहा, "इस बात की भी आशंका हो सकती है कि अगर ऐसी छुट्टी के लिए नियोक्ता को बाध्य किया गया, तो वह महिलाओं को नौकरी पर रखने से परहेज करे."