नई दिल्ली: मुकदमों को सुनवाई के लिए लगाने में भेदभाव किए जाने का आरोप सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. याचिकाकर्ता ने कोर्ट की रजिस्ट्री पर बड़े वकीलों और मामूली वकीलों के बीच भेदभाव करने का आरोप लगाया था. कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 100 रुपये का जुर्माना भी लगाया.


कैसे सुनवाई को लगती है याचिका
नई दाखिल हुई कोई याचिका सुनवाई के लिए लगाए जाने के लायक है या नहीं, इसकी शुरुआती जांच रजिस्ट्री में की जाती है. यह जांच मुख्य रूप से याचिका में तकनीकी कमियों की होती है. तकनीकी कमियां मिलने पर रजिस्ट्री वकील को उसे सुधारने के लिए कहती है. इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद याचिका को कोर्ट में सुनवाई के लिए लगा दिया जाता है.


याचिकाकर्ता की दलील
सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले दीपक कंसल नाम के वकील ने आरोप लगाया था की रजिस्ट्री बड़े और प्रभावशाली वकीलों की याचिका को सुनवाई के लिए लगाने में जल्दबाजी दिखाती है. लेकिन साधारण वकीलों के तरफ से दाखिल मुकदमा में तकनीकी कमियां बता कर उसे बार-बार सुधारने के लिए कहा जाता है, जिसके चलते मुकदमा सुनवाई के लिए जज तक पहुंचने में देर हो जाती है.


याचिकाकर्ता की मांग थी कि कोर्ट इस मसले पर निर्देश जारी कर मुकदमों को सुनवाई के लिए लगाने की पारदर्शी प्रक्रिया बनाई जाए. कोर्ट अपने रजिस्ट्रार जनरल समेत रजिस्ट्री के दूसरे अधिकारियों और सेक्शन ऑफिसर्स से कहे कि वह सभी वकीलों की याचिका को एक जैसा महत्व दें. बड़े वकीलों की याचिका को प्राथमिकता न दी जाए.


कोर्ट ने क्या कहा?
19 जून को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा, एस अब्दुल नज़ीर और एम आर शाह की बेंच ने मामले को सुना था. सुनवाई के दौरान जजों ने याचिकाकर्ता से उसके आरोप का आधार पूछा था. इस पर याचिकाकर्ता का कहना था कि उसने एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड के लिए PIL दाखिल की थी. कोर्ट की रजिस्ट्री ने उसमें कई तकनीकी कमियां निकाल दीं, लेकिन इस याचिका के बाद दाखिल हुई वरिष्ठ पत्रकार अर्णब गोस्वामी की याचिका को तुरंत सुनवाई के लिए लगा दिया गया. उसमें कोई तकनीकी कमी नहीं गिनाई गई, क्योंकि उसे बड़ी लॉ फर्म ने दाखिल किया था.


इस पर कोर्ट का कहना था, “दोनों मामलों की कोई तुलना नहीं है. अगर कोई बिना उचित कारण के गिरफ्तार कर लिए जाने का अंदेशा जताता है, तो ऐसी याचिका को तुरंत सुनना जरूरी होता है. आपने एक जनहित याचिका दाखिल की, जिसको तुरंत सुन लेना जरूरी नहीं था. इसमें रजिस्ट्री ने सामान्य प्रक्रिया के तहत काम किया. आप एक वकील होकर इस तरह की तुलना कैसे कर सकते हैं?”


सुनवाई करने वाली बेंच ने यह भी कहा कि देश में फैली महामारी के बीच रजिस्ट्री के कर्मचारियों ने दिन-रात मेहनत की ताकि वकीलों को कोई असुविधा न हो. जितना समय सामान्य दिनों में सुनवाई में लगता है, उससे भी कम समय में याचिकाओं को सुनवाई के लिए लगाया गया. रजिस्ट्री के अधिकारियों और कर्मचारियों पर इस तरह का आरोप लगना दुर्भाग्यपूर्ण है.


कोर्ट का आदेश
आज सुप्रीम कोर्ट ने अपनी इस टिप्पणी के मुताबिक ही आदेश दिया. कोर्ट ने याचिका को आधारहीन बताते हुए न सिर्फ खारिज कर दिया, बल्कि याचिकाकर्ता को सांकेतिक किस्म का दंड भी दिया. जजों ने याचिकाकर्ता दीपक कंसल पर 100 रुपये का जुर्माना लगाया है.


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