IPS अधिकारियों को अपने पास प्रतिनियुक्ति पर बुलाने के केंद्र के अधिकार को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने आज खारिज कर दी. IPS के ट्रांसफर से जुड़े नियम के मुताबिक केंद्र राज्य सरकार की मर्ज़ी न होने पर भी किसी अधिकारी को अपने पास डेप्यूटेशन पर बुला सकता है. पश्चिम बंगाल के रहने वाले वकील अबु सोहेल ने इस नियम को गलत बताते हुए याचिका दाखिल की थी.
हाल ही में हुआ है विवाद
दिसंबर में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के कार्यक्रम पर हुए हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल कैडर के 3 आईपीएस अधिकारियों- भोलानाथ पांडे, प्रवीण त्रिपाठी और राजीव मिश्रा को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुला लिया था. पश्चिम बंगाल सरकार ने उसका कड़ा विरोध करते हुए कहा था कि वह अपने अधिकारियों को रिलीज नहीं करेगी. हालांकि, नियमों का पलड़ा केंद्र की तरफ झुका हुआ है.
जानिए क्या है नियम
दरअसल, भारतीय पुलिस सेवा (IPS) एक अखिल भारतीय सेवा है. इनमें अधिकारियों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है. IPS अधिकारियों का कैडर आवंटन केंद्रीय गृह मंत्रालय करता है. उसका इन अधिकारियों पर नियंत्रण होता है. हालांकि, एक बार किसी राज्य कैडर में आवंटित हो जाने के बाद IPS अधिकारी उस राज्य सरकार के तहत काम करता है. राज्य सरकार उसे किसी पद पर नियुक्त करती है. जब ज़रूरी हो उसका ट्रांसफर करती है.
केंद्र सरकार ज़रूरी पड़ने पर किसी IPS अधिकारी को सेंट्रल डेप्यूटेशन यानी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर अपने पास बुला सकती है. ऐसा एक निश्चित समय तक के लिए किया जा सकता है. बाद में वह अधिकारी अपने मूल कैडर में लौट जाता है। केंद्र सरकार एक सीमित समय के लिए किसी IPS अधिकारी को दूसरे राज्य में भी भेज सकती है.
इंडियन पुलिस सर्विस (कैडर) रूल्स, 1954 के नियम 6 के मुताबिक केंद्र सरकार, राज्य की सहमति से किसी IPS अधिकारी को प्रतिनियुक्ति पर बुला सकती है. यानी राज्य सरकार की सहमति को महत्व दिया गया है. लेकिन यह अनिवार्य नहीं है. इसी नियम में यह लिखा गया है कि अगर राज्य सरकार केंद्र से सहमत न हो तब भी अंतिम फैसला केंद्र का ही होगा. राज्य सरकार को उसका पालन करना होगा.
SC ने सुनवाई लायक नहीं माना
आज यह मामला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भाट की बेंच में लगा. याचिकाकर्ता अबू सोहेल ने दलीलें रखने की कोशिश की. लेकिन IPS कैडर रूल्स, 1954 के नियम 6(1) को असंवैधानिक बताने वाली इस याचिका से जज सहमत नहीं थे. उन्होंने इस पर विचार से मना करते हुए याचिका खारिज कर दी.
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