Supreme Court On Population Control: देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून (Population Control Law) की मांग करने वाली याचिकाओं पर आगे सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि कानून बनाना कोर्ट का नहीं, संसद का काम है. इस तरह की याचिकाएं प्रचार के लिए दाखिल की जाती हैं. जजों के रुख को देखते हुए याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका वापस ले ली.


याचिका में क्या कहा गया था?


बीजेपी (BJP) नेता अश्विनी उपाध्याय समेत कई लोगों की याचिकाओं में कहा गया था कि बढ़ती आबादी के चलते लोगों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया नहीं हो पा रही है. भारत में दुनिया की कुल कृषि भूमि का 2 फ़ीसदी और पेयजल का चार फ़ीसदी है, जबकि आबादी पूरी दुनिया की 20 फ़ीसदी है. ज़्यादा आबादी के चलते लोगों को आहार, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित होना पड़ रहा है. यह सीधे-सीधे सम्मान के साथ जीवन जीने के मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) का उल्लंघन है. आबादी पर नियंत्रण पाने से लोगों के कल्याण के लिए बनी तमाम सरकारी योजनाओं को लागू करना आसान हो जाएगा. इसके बावजूद सरकारें जनसंख्या नियंत्रण का कोई कानून नहीं बनाती है.


2020 में जारी हुआ था नोटिस


अश्विनी उपाध्याय की याचिका पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज की थी. लेकिन 10 जनवरी 2020 को तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने उनकी अपील पर केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांग लिया था. याचिका के जवाब में केंद्र ने कहा था कि वह परिवार नियोजन को अनिवार्य करने का कानून बनाने के पक्ष में नहीं है. परिवार नियंत्रण कार्यक्रम को स्वैच्छिक रखना ही सही होगा.


'क्या कोर्ट यह सब तय करेगा?' 


उपाध्याय के अलावा कोर्ट ने स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, देवकीनंदन ठाकुर, अंबर ज़ैदी और फिरोज़ बख्त अहमद की याचिकाओं को भी सुनवाई के लिए लगाया था. जस्टिस संजय किशन कौल और अभय एस ओका की बेंच याचिका में रखी गई मांग से सहमत नहीं हुए. जस्टिस कौल ने कहा, "क्या कोर्ट यह तय करेगा? बात में कोई तर्क होना चाहिए."


'सरकार को लेने दीजिए फैसला'


जजों के रुख को देखते हुए याचिकाकर्ता की ओर से मांग की गई कि मामला लॉ कमीशन (Law Commission) के पास भेज दिया जाए ताकि वह इस पर अध्ययन कर सरकार को रिपोर्ट दे. कोर्ट ने इसे भी ठुकराते हुए कहा, "अपनी याचिका पर आप खुद दलील दीजिए. मामला लॉ कमीशन को भेजने की बात मत कहिए. आखिरकार आप चाहते तो यही हैं न कि एक परिवार में 2 बच्चों का अनिवार्य कानून बनाया जाए. यह सरकार को तय करने दीजिए." सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद केंद्र सरकार के वकील सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जनसंख्या को नियंत्रित रखने के लिए सरकार हर संभव कदम उठा रही है.


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