Supreme Court: 15 मार्च तक अलग-अलग पार्टियों को इलेक्टरल बॉन्ड से मिले चंदे की जानकारी सार्वजनिक हो जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने चंदे से जुड़ा ब्यौरा देने के लिए समय मांगने वाली स्टेट बैंक की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा गया कि स्टेट बैंक 12 मार्च तक चुनाव आयोग को आंकड़ा उपलब्ध करवा दे. इसके बाद चुनाव आयोग 15 मार्च तक उसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दे.


15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया था. कोर्ट ने स्टेट बैंक से 6 मार्च तक चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को देने को कहा था. लेकिन बैंक ने 4 मार्च को आवेदन दाखिल कर दिया कि उसे 30 जून तक का समय चाहिए. उसी आवेदन को आज सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया है.


फिलहाल नहीं चलेगा अवमानना का केस


मुख्य मामले में याचिकाकर्ता रहे एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और सीपीएम ने स्टेट बैंक के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल की थी. लेकिन चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने फिलहाल अवमानना का मुकदमा चलाने से मना कर दिया. चीफ जस्टिस ने कहा, "हम अभी अवमानना की कार्रवाई नहीं कर रहे है. लेकिन अब आदेश का पालन नहीं किया तो अवमानना का मुकदमा चलाएंगे."


कोर्ट ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि स्टेट बैंक की तरफ से आवेदन असिस्टेंट जनरल मैनेजर रैंक के अधिकारी ने दाखिल किया. जजों ने कहा कि यह एक गंभीर बात है. स्टेट बैंक आज दिए आदेश पर अमल करे और इसकी जानकारी देते हुए हलफनामा दाखिल करे. यह हलफनामा चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर (CMD) की तरफ से दाखिल किया जाए.


15 फरवरी को कोर्ट ने क्या आदेश दिया था?


15 फरवरी को संविधान पीठ ने इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक करार दिया था. कोर्ट ने माना था कि दानदाता और उससे चंदा पाने वाली पार्टी की जानकारी गोपनीय रखना गलत है. मतदाता को यह जानने का अधिकार है कि किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया. अपने आदेश में कोर्ट ने कहा था कि किस दानदाता ने किस तारीख को कितनी राशि का बॉन्ड खरीदा स्टेट बैंक इसकी जानकारी चुनाव आयोग को 6 मार्च तक दे. स्टेट बैंक यह भी बताए कि उस बॉन्ड को किस पार्टी ने कैश करवाया.


SBI ने क्या कहा था?


स्टेट बैंक ने कहा था कि 2019 से 2024 के बीच 22 हज़ार से ज़्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड बिके. उसके पास खरीदने वालों की जानकारी है. उन्हें कैश करवाने वालों की भी जानकारी है. कानून में रखी गई गोपनीयता की शर्त के चलते इन जानकारियों को अलग-अलग रखा गया है. दोनों को मिला कर 44 हज़ार से ज़्यादा आंकड़े हैं. उनके मिलान में समय लगेगा.


कोर्ट ने क्या कहा?


कोर्ट ने इस बात पर सवाल उठाए कि 15 फरवरी को फैसला आने के बाद भी स्टेट बैंक ने सक्रियता नहीं दिखाई. कोर्ट ने यह भी कहा कि जब सारा आंकड़ा मौजूद है तो इतना लंबा समय लगना उचित नहीं. आखिरकार कोर्ट ने स्टेट बैंक का आवेदन खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि जो आंकड़ा स्टेट बैंक के पास उपलब्ध है, वह उसे चुनाव आयोग को मंगलवार शाम तक दे दे. चुनाव आयोग 15 मार्च तक उसे अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित कर दे.


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