DERC Case: दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (DERC) के अध्यक्ष की नियुक्ति पर दिल्ली सरकार को शनिवार (19 मई) को राहत मिली. सुप्रीम कोर्ट ने एलजी वीके सक्सेना की तरफ से की जा रही देरी को गलत बताते हुए उन्हें 2 हफ्ते में प्रक्रिया निपटाने को कहा है. कोर्ट ने साफ किया कि जिस हाई कोर्ट जज की नियुक्ति पद पर की जाएगी, सरकार को उस हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से पहले मंजूरी लेनी होगी. 


सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने विद्युत अधिनियम की धारा 84 का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य विद्युत विनियामक आयोग के पद पर किसी मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति करते वक्त उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करना होगा, जिससे वह न्यायाधीश जुड़े हैं.  बेंच ने कहा कि अगर संबंधित जज ने उस होई कोर्ट में सेवा नहीं दी है, जिसके अधिकार क्षेत्र में बिजली नियामक आयोग आता है तो संबंधित मुख्य न्यायाधीश से नियुक्ति के लिए परामर्श की आवश्यकता नहीं है. 


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 84 में राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है और मूल भाग इंगित करता है कि राज्य सरकार किसी भी व्यक्ति को ‘‘जो हाई कोर्ट का न्यायाधीश है या रह चुका है’’ को नियुक्त कर सकती है. संविधान पीठ के 2018 के फैसले और केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सेवा विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के हाल में सुनाए गए फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट कर दिया गया है कि उपराज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर काम करना है. 


दिल्ली सरकार ने क्या कहा?
दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि दिल्ली सरकार ने पद खाली होने से पहले डीईआरसी अध्यक्ष के रूप में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए उपराज्यपाल को एक प्रस्ताव भेजा था, लेकिन कोई फैसला नहीं आया है. विद्युत अधिनियम की धारा 84(2) का उल्लेख करते हुए सिंघवी ने कहा कि नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति के मूल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श आवश्यक है. 


बता दें कि तत्कालीन उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने 10 जनवरी को एलजी सक्सेना को पत्र लिखकर डीईआरसी अध्यक्ष की नियुक्ति को तत्काल मंजूरी देने का अनुरोध किया था.


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