Supreme Court Important Clarification: जब कोई जज दूसरे हाईकोर्ट से ट्रांसफर होकर आता है तो हाईकोर्ट की रिक्तियों को कैसे वर्गीकृत किया जाए, इस बारे में देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिया. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस. ओका की खंडपीठ ने कहा कि ट्रांसफर्ड जज 'बार जज' या 'सर्विस जज' के ठप्पे के साथ नहीं जाता, बल्कि कोई जज एक ट्रांसफर्ड जज के रूप में हाईकोर्ट में जाता है और यह हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि रिक्तियों को कैसे वर्गीकृत किया जाए.
गौरतलब हो कि अमूमन बार और सर्विस से लिए गए जजों के बीच एक अनुपात बनाए रखा जाता है. हाईकोर्ट में 2 तिहाई जजों को बार से पदोन्नत किया जाता है, जबकि शेष एक तिहाई जजों को जिला न्यायिक सेवा से पदोन्नत किया जाता है. इसलिए, जब एक जज दूसरे हाईकोर्ट से ट्रांसफर होकर दूसरे हाईकोर्ट में पहुंचता है तो उस जज को 'बार कोटा' में रखा जाए या 'सर्विस कोटा' में, यह भ्रम का विषय रहता है. इसी तरह के मुद्दे पर शुक्रवार (6 जनवरी) को सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने दिया महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की खंडपीठ ने कहा कि जब एक जज को एक हाईकोर्ट से दूसरे हाईकोर्ट में ट्रांसफर किया जाता है, तो वह जज 'बार जज' या 'सर्विस जज' के लेबल के साथ नहीं जाता. बल्कि इसका निर्णय हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि वहां रिक्तियों को कैसे वर्गीकृत किया जाना है.
सुप्रीम कोर्ट में संजय किशन कौल ने समझाया कि उपरोक्त स्पष्टीकरण आवश्यक है क्योंकि, "मंत्रालय ने कई बार इस धारणा के साथ पत्र जारी कर रहा है जैसे कि बार जजों को ट्रांसफर कर दिया गया है, इसलिए बार रिक्तियां खत्म हो जाएंगी. हम कहते हैं कि नहीं, यह इस तरह से काम नहीं करता है. वे बार से हो सकते हैं या सर्विस से, यह चीफ जस्टिस पर निर्भर करता है."
ट्रांसफर्ड जज पर बार या सर्विस जज का लेबल नहीं होता
एक ट्रांसफर्ड जज की प्रकृति की ओर इशारा करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की खंडपीठ ने कहा, "जब एक जज को किसी अन्य कोर्ट में ट्रांसफर किया जाता है तो वह ट्रांसफर्ड जज होता है- उसे न तो बार से वर्गीकृत किया जाता है और न ही सर्विस जज के रूप में.
जिस कोर्ट में उसे ट्रांसफर किया जाता है, वह उस कोर्ट में जजों की संख्या में अपनी फिजिकल पोजिशन रखता है और जब तक तदनुरूप उस कोर्ट से जजों का ट्रांसफर नहीं किया जाता है, तब तक उस कोर्ट में बार/सर्विस से कम व्यक्ति नियुक्त किए जाएंगे, क्योंकि जिस कोर्ट में ट्रांसफर किया गया है उसकी कुल संख्या को पार नहीं किया जा सकता है."
खंडपीठ ने आगे कहा, "हम यह साफ कर देते हैं कि ट्रांसफर्ड जज पर बार या सर्विस जज का लेबल नहीं होता है और यह कोर्ट के चीफ जस्टिस पर निर्भर करता है कि ट्रांसफर कोर्ट में यानी बार या सर्विस से आने वाले प्रवाह को कम करने के लिए उन्हें कहां ट्रांसफर किया जाता है.
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