नई दिल्ली: बीसीसीआई में सुधार के आड़े आ रहे अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को सुप्रीम कोर्ट ने हटा दिया है. लोढ़ा कमिटी की सिफारिशें लागू न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने ये कार्रवाई की है.


क्यों हुई कार्रवाई
दरअसल, पिछले साल 19 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने देश के क्रिकेट प्रशासन में सुधार के लिए लोढ़ा कमिटी की सिफारिशें पूरी तरह से लागू करने का आदेश दिया था. लेकिन बीसीसीआई के अधिकारी सिफारिशों को लागू करने में टालमटोल कर रहे थे. ऐसे में लोढ़ा कमिटी ने कोर्ट से मांग की थी कि वो बीसीसीआई के आला अधिकारियों को बर्खास्त कर नए प्रशासकों की नियुक्ति करे.


जल्द ही बोर्ड में नए प्रशासक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो 19 जनवरी को होने वाली अगली सुनवाई में बीसीसीआई में प्रशासकों की नयी टीम की नियुक्ति करेगा. कोर्ट ने इसके लिए वरिष्ठ वकीलों गोपाल सुब्रमण्यम और फली नरीमन से नाम सुझाने को कहा है.


सभी सिफारिशें लागू की
कोर्ट ने आज लोढ़ा कमिटी की सभी सिफारिशों को तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया. इससे केंद्र या राज्य में मंत्री का पद संभाल रहे लोग क्रिकेट एसोसिएशन से बाहर हो जाएंगे. क्रिकेट संघ में 9 साल पूरे कर चुके या 70 साल से ऊपर के लोग भी अब पद पर नहीं रह सकेंगे. आपराधिक मामलों में चार्जशीटेड लोग भी अपने पद से हटा दिए गए हैं. यही वो सिफारिशें हैं जिन्हें लेकर क्रिकेट प्रशासन से जुड़े लोग सबसे ज़्यादा अड़ंगेबाजी कर रहे थे.


कोर्ट ने और क्या कहा
कोर्ट ने कहा है कि सुधार में अड़चन डाल रहे राज्य क्रिकेट संघों के पदाधिकारियों को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा. लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को मानने का हलफनामा देकर ही कोई बीसीसीआई या राज्य संघों में काम कर सकेगा.


ठाकुर और शिर्के को कानूनी कार्रवाई का भी नोटिस
कोर्ट ने दोनों को अवमानना का नोटिस जारी किया है. साथ ही, अदालत में गलत हलफनामा दाखिल करने के लिए उन पर धोखाधड़ी का भी मुकदमा चल सकता है. कोर्ट ने इस पर भी दोनों से सफाई मांगी है.


गौरतलब है कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल यानी आईसीसी को लिखी अनुराग ठाकुर की एक चिट्ठी पर गहरी नाराज़गी जताई थी. इस चिट्ठी में ठाकुर ने आईसीसी से दरख्वास्त की थी कि वो बीसीसीआई में सीएजी के नुमाइंदे को रखे जाने का विरोध करे. बोर्ड में ऑडिटर को रखने की सिफारिश भी लोढ़ा कमिटी की थी. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने इसे सीधे अदालत के साथ धोखाधड़ी माना था.