क्या भारत में हमेशा के लिए रहेगा आरक्षण? सुप्रीम कोर्ट ने दिया ये जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट किया है. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण को बरकरार रखते हुए कोर्ट ने कहा है कि शिक्षा और रोजगार में यह नीति हमेशा के लिए नहीं टिक सकती.
Supreme Court On Reservation: सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन की वैधता को तीन मतों के बहुमत से बरकरार रखा. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल का भी जवाब दिया कि क्या भारत में हमेशा आरक्षण रहेगा. संविधान पीठ के तीन न्यायाधीशों ने बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों मतों का गठन करने वाले विचारों में कहा कि शिक्षा और रोजगार में आरक्षण की नीति अनिश्चितकाल तक जारी नहीं रह सकती है.
'आरक्षण नीति में एक समय अवधि होनी चाहिए'
न्यायमूर्ति पीबी परदीवाला का कहना है कि वास्तविक समाधान उन कारणों को खत्म करने में है जो समुदाय के कमजोर वर्गों के सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन को जन्म देते हैं. वहीं न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी बहुमत के फैसले का हिस्सा थीं, उन्होंने कहा, "आरक्षण नीति में एक समय अवधि होनी चाहिए. हमारी आजादी के 75 साल के अंत में हमें परिवर्तनकारी संवैधानिकता की दिशा में एक कदम के रूप में समग्र रूप से समाज के व्यापक हित में आरक्षण प्रणाली पर फिर से विचार करने की जरूरत है."
उन्होंने कहा, "लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोटा संविधान के लागू होने के 80 साल बाद समाप्त हो जाएगा. 25 जनवरी, 2020 से 104वें संविधान संशोधन के कारण संसद और विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदायों का प्रतिनिधित्व पहले ही बंद हो गया है. इसलिए, संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में प्रदान किए गए आरक्षण और प्रतिनिधित्व के संबंध में विशेष प्रावधानों के लिए एक समान समय सीमा, यदि निर्धारित की गई है, तो यह एक समतावादी, जातिविहीन और वर्गहीन समाज की ओर अग्रसर हो सकता है."
'आरक्षण अंत नहीं, बल्कि साधन है'
न्यायमूर्ति पी.बी. पारदीवाला ने कहा, "आरक्षण एक अंत नहीं है, बल्कि एक साधन है सामाजिक और आर्थिक न्याय को सुरक्षित करने के लिए. आरक्षण को निहित स्वार्थ नहीं बनने देना चाहिए. लंबे समय से विकास और शिक्षा के प्रसार के परिणामस्वरूप कक्षाओं के बीच की खाई काफी हद तक कम हो गई है. पिछड़े वर्ग के सदस्यों का बड़ा प्रतिशत शिक्षा और रोजगार के स्वीकार्य मानकों को प्राप्त करता है. उन्हें पिछड़ी श्रेणियों से हटा दिया जाना चाहिए ताकि उन लोगों की ओर ध्यान दिया जा सके जिन्हें वास्तव में मदद की जरूरत है.
एस रवींद्र भट ने याद दिलाई अंबेडकर की टिप्पणी
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, "पिछड़े वर्गों की पहचान के तरीके और निर्धारण के तरीकों की समीक्षा करना और यह भी पता लगाना बहुत जरूरी है कि पिछड़े वर्ग के वर्गीकरण के लिए अपनाया या लागू किया गया मानदंड आज की परिस्थितियों के लिए प्रासंगिक है या नहीं." बेंच पर अपने अल्पसंख्यक विचार में न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने बाबा साहेब अंबेडकर की टिप्पणियों को याद दिलाया कि आरक्षण को अस्थायी और असाधारण के रूप में देखा जाना चाहिए "अन्यथा वे समानता के नियम को खा जाएंगे."
ये भी पढ़ें- आज दुनिया फिर भारत की बढ़ती ताकत का करेगी अहसास...पीएम मोदी G-20 की अध्यक्षता के लोगो, थीम और वेबसाइट करेंगे लॉन्च