अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित, 9 जजों की बेंच को केस भेजने की थी मांग
Court News: फरवरी 2019 को इस मसले पर 2 न्यायमूर्तियों की बेंच ने फैसला दिया था, लेकिन दोनों न्यायमूर्तियों, जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण का निर्णय अलग-अलग था.
![अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित, 9 जजों की बेंच को केस भेजने की थी मांग Supreme Court reserved decision in the transfer posting case of officers ann अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित, 9 जजों की बेंच को केस भेजने की थी मांग](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/01/18/832508c3d9129df0a57493c9c91900591674029418450330_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Supreme Court Hearing: अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार मांग रही दिल्ली सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के 5 न्यायमूर्तियों की संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुनवाई के आखिरी दिन केंद्र सरकार के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामला बड़ी बेंच को भेजने की मांग की. कोर्ट ने सुनवाई के अंत में ऐसी मांग पर हैरानी जताई, लेकिन उन्हें इसका आवेदन दाखिल करने की अनुमति दे दी.
दिल्ली सरकार के लिए पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी केंद्र की मांग का विरोध किया, लेकिन सॉलीसिटर जनरल ने कहा कि देश की राजधानी को अराजकता में नहीं झोंका जा सकता. मामला 9 न्यायमूर्तियों की बेंच के पास भेजने की जरूरत है. मेहता ने 1996 में आए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए यह मांग की.
काफी समय से लंबित है विवाद
4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र बनाम दिल्ली विवाद के कई मसलों पर फैसला दिया था, लेकिन सर्विसेज यानी अधिकारियों पर नियंत्रण जैसे कुछ मुद्दों को आगे की सुनवाई के लिए छोड़ दिया था. जिसके बाद 14 फरवरी 2019 को इस मसले पर 2 न्यायमूर्तियों की बेंच ने फैसला दिया था, लेकिन दोनों न्यायमूर्तियों, जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण का निर्णय अलग-अलग था. इसके बाद मामला 3 न्यायमूर्तियों की बेंच के सामने लगा. आखिरकार चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 न्यायमूर्तियों की बेंच ने सुना. बेंच के बाकी 4 सदस्य हैं- जस्टिस एमआर शाह, कृष्णा मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा.
दोनों पक्षों की दलील
दिल्ली सरकार ने दलील दी कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ कह चुकी है कि भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता रहेगी. दिल्ली का प्रशासन चलाने के लिए आईएएस अधिकारियों पर राज्य सरकार का पूरा नियंत्रण जरूरी है, लेकिन केंद्र सरकार ने कहा कि गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट (GNCTD Act) में किए गए संशोधन से स्थिति में बदलाव हुआ है. दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है. यहां की सरकार को पूर्ण राज्य की सरकार जैसे अधिकार नहीं दिए जा सकते. केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार राजनीतिक अपरिपक्वता के चलते लगातार विवाद की स्थिति बनाए रखना चाहती है.
केंद्र की मांग
सॉलिसिटर जनरल ने 2018 में आए फैसले को भी गलत बताया. उन्होंने कहा कि इस फैसले में दिल्ली को अलग दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 239AA की गलत व्याख्या की गई है. 1996 में एनडीएमसी बनाम पंजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट के 9 न्यायमूर्तियों की बेंच ने कहा था कि दिल्ली का दर्जा केंद्र शासित क्षेत्र का है. 2 फैसलों में विरोधाभास के चलते मामला 9 न्यायमूर्तियों की बेंच के पास भेजा जाना चाहिए.
![IOI](https://cdn.abplive.com/images/IOA-countdown.png)
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![ABP Premium](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)
![शिवाजी सरकार](https://feeds.abplive.com/onecms/images/author/5635d32963c9cc7c53a3f715fa284487.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=70)