चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसफ की बेंच ने इस मामले में आलोक वर्मा, केन्द्र, केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) और अन्य पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा.
कोर्ट ने सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना सहित जांच एजेन्सी के कई अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच शीर्ष अदालत की निगरानी में विशेष जांच दल से कराने के लिये गैर सरकारी संगठन कामन कॉज की याचिका पर भी सुनवाई की. इसके अलावा, बेंच ने लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और राकेश अस्थाना का पक्ष भी सुना.
अदालत में सुनवाई के दौरान पूछा गया
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा, ''दो आला अधिकारियों का झगड़ा रातों रात सामने नहीं आया. ऐसा जुलाई से चल रहा था. उन्हें आधिकारिक काम से हटाने से पहले चयन समिति से बात करने में क्या दिक्कत थी? 23 अक्टूबर को अचानक फैसला क्यों लिया गया?''
सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल पर सीवीसी के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ''सीबीआई में जैसे हालात थे. उसमें सीवीसी मूकदर्शक बन कर नहीं बैठा रह सकता था. ऐसा करना अपने दायित्व को नज़रअंदाज़ करना होता. सीबीआई निदेशक शिकायतों की जांच से जुड़े ज़रूरी कागज़ात मुहैया नहीं करवा रहे थे. दोनों अधिकारी एक दूसरे के ऊपर छापा डाल रहे थे. लिहाजा सीवीसी का दखल देना ज़रूरी हो गया था.''
क्या है मामला?
सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे. इन दोनों के बीच लड़ाई तेज होने पर सरकार ने सीवीसी की सिफारिश पर वर्मा को निदेशक के अधिकारों से वंचित करते हुये छुट्टी पर भेज दिया था. इस मसले को अलग-अलग याचिकाओं के जरिए कोर्ट में रखा गया.
CBI Vs CBI: SC ने सरकार से पूछा- अधिकारियों को हटाने से पहले चयन समिति से बात क्यों नहीं की?