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सुप्रीम कोर्ट ने 'इच्छामृत्यु' पर फैसला सुरक्षित रखा: तय होगा 'लिविंग विल' का अधिकार
पैसिव यूथनेशिया में लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति जो लंबे समय से कोमा में हो. उसके रिश्तेदारों की सहमति से डॉक्टर जीवन रक्षक उपकरण बंद करके उसका जीवन खत्म कर सकते हैं.
नई दिल्ली: ‘इच्छामृत्यु’ पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या किसी व्यक्ति को 'लिविंग विल' का अधिकार दिया जा सकता है, जिसके तहत वो ये लिख सके कि उसके कोमा में जाने पर उसे लाइफ सपोर्ट सिस्टम में ज़बरन ज़िंदा न रखा जाए.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कल इस मसले पर सुनवाई शुरू की थी. हालांकि केंद्र सरकार ने इस मांग का विरोध किया है. एनजीओ कॉमन कॉज़ ने 2005 में इस मसले पर याचिका दाखिल की थी. कॉमन कॉज़ के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों को 'लिविंग विल' बनाने हक होना चाहिए. उन्होंने कहा कि 'लिविंग विल' के ज़रिये एक शख्स ये कह सकेगा कि जब वो ऐसी स्थिति में पहुंच जाए, जहां उसके ठीक होने की उम्मीद न हो, तब उसे जबरन लाइफ सपोर्ट पर न रखा जाए.
प्रशांत भूषण ने साफ़ किया कि वो एक्टिव यूथनेशिया की वकालत नहीं कर रहे, जिसमें लाइलाज मरीज़ को इंजेक्शन दे कर मारा जाता है. वो पैसिव यूथनेशिया की बात कर रहे हैं, जिसमें कोमा में पड़े लाइलाज मरीज़ को वेंटिलेटर जैसे लाइफ स्पोर्ट सिस्टम से निकाल कर मरने दिया जाता है.
इस पर अदालत ने सवाल किया कि आखिर ये कैसे तय होगा कि मरीज़ ठीक नहीं हो सकता? प्रशांत भूषण ने जवाब दिया कि ऐसा डॉक्टर तय कर सकते हैं. फ़िलहाल कोई कानून न होने की वजह से मरीज़ को जबरन लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा जाता है. भूषण ने कहा कि कोमा में पहुंचा मरीज़ खुद इस स्थिति में नहीं होता कि वो अपनी इच्छा व्यक्त कर सके. इसलिए उसे पहले ही ये लिखने का अधिकार होना चाहिये कि जब उसके ठीक होने की उम्मीद खत्म हो जाए तो उसके शरीर को यातना न दी जाए.
केंद्र सरकार ने कहा कि उसने इस बारे में एक कमिटी बनाई थी. कमिटी ने विशेष परिस्थितियों में पैसिव यूथनेशिया यानी कोमा में पड़े मरीज़ का लाइफ स्पोर्ट सिस्टम हटाने को सही बताया है. लेकिन लिविंग विल की मांग का सरकार समर्थन नहीं करती. ये एक तरह से आत्महत्या जैसा है. सरकार ने कहा वो लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने के लिए मेडिकल बोर्ड के गठन पर जल्द ही कानून बनाने का इरादा रखती है. मामले पर कल भी सुनवाई जारी रहेगी.
गौरतलब है कि लगभग 35 साल से कोमा में पड़ी मुंबई की नर्स अरुणा शानबॉग को इच्छा मृत्यु देने से सुप्रीम कोर्ट ने साल 2011 में मना कर दिया था. उसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि डॉक्टरों के पैनल की सिफारिश, परिवार की सहमति और हाई कोर्ट की इजाज़त से कोमा में पहुंचे लाइलाज मरीज़ों को लाइफ स्पोर्ट सिस्टम से हटाया जा सकता है.
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