नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि राफेल लड़ाकू विमान सौदे के तथ्यों पर गौर करने से पहले वह केन्द्र सरकार द्वारा उठाई गयी प्रारंभिक आपत्तियों पर फैसला करेगा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने शीर्ष अदालत के आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं से कहा कि पहले वह लीक हुये दस्तावेजों की स्वीकार्यता के बारे में प्रारंभिक आपत्तियों पर ध्यान दें.


पीठ ने कहा, ''केन्द्र द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों पर फैसला करने के बाद ही हम मामले के तथ्यों पर गौर करेंगे.'' इससे पहले, मामले की सुनवाई शुरू होते ही केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने फ्रांस के साथ हुये राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे से संबंधित दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा किया. उन्होंने कोर्ट से कहा कि संबंधित विभाग की अनुमति के बगैर कोई भी इन्हें अदालत में पेश नहीं कर सकता.


वेणुगोपाल ने अपने दावे के समर्थन में साक्ष्य कानून की धारा 123 और सूचना के अधिकार कानून के प्रावधानों का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित कोई भी दस्तावेज कोई प्रकाशित नहीं कर सकता क्योंकि राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि है. शीर्ष अदालत के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि राफेल सौदे के दस्तावेज, जिन पर अटार्नी जनरल विशेषाधिकार का दावा कर रहे हैं, प्रकाशित हो चुके हैं और यह पहले से सार्वजनिक दायरे में हैं.


भूषण ने कहा कि सूचना के अधिकार कानून के प्रावधान कहते हैं कि जनहित अन्य बातों से सर्वोपरि है और गुप्तचर एजेन्सियों से संबंधित दस्तावेजों के अलावा किसी भी अन्य दस्तावेज पर विशेषाधिकार का दावा नहीं किया जा सकता. भूषण ने कहा कि राफेल विमानों की खरीद के लिये दो सरकारों के बीच कोई करार नहीं है क्योंकि फ्रांस सरकार ने भारत को कोई संप्रभु गारंटी नहीं दी है. उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय प्रेस परिषद कानून में पत्रकारों के स्रोत को संरक्षण प्रदान करने का प्रावधान है.


कूटनीतिक पैंतरों के बीच करतारपुर मुद्दे पर बातचीत टालने का संदेश नहीं देना चाहता भारत


यह भी देखें