पेगासस मामले की जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा, सरकार ने दिया निष्पक्ष कमिटी का प्रस्ताव
पेगासस जासूसी मामले की जांच की मांग पर SC ने आदेश सुरक्षित रख लिया है. केंद्र ने कहा था कि वह मामले में विस्तृत जवाब दाखिल करने पर विचार कर रही है. लेकिन सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इससे मना कर दिया.
पेगासस जासूसी मामले की जांच की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है. सुनवाई के दौरान केंद्र ने विशेषज्ञों की एक निष्पक्ष कमिटी बनाने का प्रस्ताव दिया जो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम करेगी. याचिकाकर्ताओं ने इसका विरोध करते हुए कहा कि कमिटी के गठन कोर्ट करे. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने संकेत दिए हैं कि 2-3 दिन के बाद आदेश आ सकता है.
जवाब दाखिल करने के किया मना
केंद्र सरकार ने 7 सितंबर को कहा था कि वह मामले में विस्तृत जवाब दाखिल करने पर विचार कर रही है. लेकिन आज सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इससे मना कर दिया. उन्होंने कहा, "याचिकाकर्ता चाहते हैं कि बताए कि वह पेगासस का इस्तेमाल करती है या नहीं. हम हां कहें या न, देश के दुश्मनों के लिए यह जानकारी अहम होगी. वह उसी हिसाब से अपनी तैयारी करेंगे. यह विषय सार्वजनिक चर्चा का नहीं है. हमें कमिटी बनाने दीजिए. कमिटी कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेगी."
चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और हिमा कोहली की बेंच ने कहा, "हमनें भी कहा था कि कोई भी संवेदनशील जानकारी हलफनामे में न लिखी जाए. सिर्फ यही पूछा था कि क्या जासूसी हुई, क्या यह सरकार की सहमति से हुआ." इसके बाद कोर्ट ने 2019 में आए तत्कालीन आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद के बयान का हवाला दिया. उसमें भारत के कुछ नागरिकों की जासूसी का अंदेशा जताया गया था. जवाब में मेहता ने वर्तमान आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के संसद में दिए बयान का हवाला दिया. इस बयान में सरकार ने किसी भी तरह की जासूसी का खंडन किया था.
इन वरिष्ठ वकीलों ने किया विरोध
याचिकाकर्ता पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल, श्याम दीवान, दिनेश द्विवेदी, राकेश द्विवेदी, मीनाक्षी अरोड़ा और कोलिन गोंजाल्विस ने सरकार के रवैये के विरोध किया. सिब्बल ने कहा, "सरकार कह रही है कि वह कोर्ट को जानकारी नहीं देगी. वह किसी को जानकारी नहीं दे रही. जासूसी की शिकायत पर अपनी तरफ से एफआईआर दर्ज भी नहीं की. 2019 में कहा गया था कि 120 लोगों की जासूसी की आशंका पर सरकार ने संज्ञान लिया है. व्हाट्सएप से जवाब मांगा गया है. इसका क्या हुआ? हमारा आरोप है कि सरकार जानकारी छिपाना चाहती है. फिर उसे कमिटी क्यों बनाने दिया जाए? हवाला केस में कोर्ट ने रिटायर्ड जज की कमिटी बनाई थी. ऐसा ही इस मामले में हो."
'कोर्ट से कुछ नहीं छुपाना चाहती है सरकार'
चीफ जस्टिस ने कहा, "हमें जानना था कि क्या कोई भी इस स्पाईवेयर का इस्तेमाल कर सकता है? क्या भारत में इसका इस्तेमाल सरकार ने किया? क्या यह कानूनी तरीके से हुआ? हमनें सरकार को जवाब का अवसर दिया. लेकिन अगर वह आगे हलफनामा दाखिल नहीं करना चाहती, तो हमें आदेश पारित करना पड़ेगा." सॉलिसीटर जनरल ने एक बार फिर सरकार का बचाव करते हुए कहा कि वह कोर्ट से कुछ नहीं छुपाना चाहती. सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के चलते सॉफ्टवेयर इस्तेमाल पर सार्वजनिक चर्चा नहीं चाहती.
'याचिकाकर्ताओं की आपत्ति अनावश्यक'
तुषार मेहता ने कहा, "कमिटी के गठन पर याचिकाकर्ताओं की आपत्ति अनावश्यक है. यह विशेषज्ञों की निष्पक्ष कमिटी होगी. कमिटी सरकार का कोई व्यक्ति नहीं होगा. जिन्हें जासूसी का संदेह है, वह अपना फोन कमिटी को दे सकते हैं. कमिटी कोर्ट की निगरानी में काम करेगी. कोर्ट को ही रिपोर्ट देगी. इन दलीलों के बाद बेंच ने अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया.
15 याचिकाएं हैं लंबित
सुप्रीम कोर्ट में पेगासस मामले की निष्पक्ष जांच के लिए 15 याचिकाएं लंबित हैं. यह याचिकाएं वरिष्ठ पत्रकार एन राम, राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा समेत कई जाने-माने लोगों की है. उन्होंने राजनेताओं, पत्रकारों, पूर्व जजों और सामान्य नागरिकों की स्पाईवेयर के ज़रिए जासूसी का आरोप लगाया है.
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