सुप्रीम कोर्ट ने अपनी अवमानना के मामले भगोड़े कारोबारी विजय माल्या की सज़ा पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है. केंद्र सरकार ने माल्या को अधिकतम सज़ा दिए जाने की मांग की. केंद्र ने कहा कि माल्या ने न सिर्फ विदेशी खातों में पैसे ट्रांसफर करने को लेकर कोर्ट को गलत जानकारी दी, बल्कि पिछले 5 साल से कोर्ट में पेश न होकर अवमानना को और आगे बढ़ाया है. 


माल्या को 2017 में ही सुप्रीम कोर्ट ने अपनी अवमानना का दोषी करार दिया था. सज़ा पर चर्चा के लिए अब तक न तो माल्या पेश हुआ, न उसकी तरफ से कोई वकील. 10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टालते हुए माल्या को पक्ष रखने का अंतिम मौका दिया था. कोर्ट ने कहा था कि अगर अगली सुनवाई में दोषी खुद पेश नहीं होता या अपने वकील के ज़रिए पक्ष नहीं रखता, तो भी सज़ा को लेकर कार्रवाई नहीं रोकी जाएगी. 


बैंकों के हज़ारों करोड़ रुपये हजम कर फरार माल्या को सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2017 को अवमानना का दोषी ठहराया था. उसे डिएगो डील के 40 मिलियन डॉलर अपने बच्चों के विदेशी एकाउंट में ट्रांसफर करने और सम्पत्ति का सही ब्यौरा न देने के लिए अवमानना का दोषी करार दिया गया था. उसकी पुनर्विचार याचिका भी खारिज की जा चुकी है. सज़ा पर चर्चा के लिए दोषी का पेश होना कानूनी ज़रूरत है. लेकिन माल्या कई बार मौका मिलने के बावजूद पेश नहीं हुआ है. 


केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि प्रत्यर्पण की कानूनी लड़ाई हार जाने के बावजूद माल्या कुछ कानूनी दांवपेंच अपना कर यूनाइटेड किंगडम में बना हुआ है. उसने वहां कोई गुप्त कानूनी प्रक्रिया शुरू कर ली है. यूके की सरकार ने न तो इस प्रक्रिया में भारत सरकार को पक्ष बनाया है, न उसकी जानकारी साझा की है. इस कारण माल्या को अब तक भारत नहीं लाया जा सका है. 


कोर्ट ने वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता को मामले में अपनी सहायता के लिए एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था. उनकी सलाह पर ही माल्या को आखिरी मौका दिया गया था. आज एमिकस क्यूरी ने कोर्ट को बताया कि माल्या की तरफ से पहले नियुक्त किए गए वकील भी अब इस मामले में नहीं आ रहे हैं. ऐसा नहीं माना जा सकता कि माल्या को पुनर्विचार याचिका खारिज होने की जनकारी नहीं है. इसलिए अब कार्रवाई को आगे बढ़ाना बेहतर होगा. 


सुनवाई के दौरान कोर्ट में यह बात भी उठी कि सिविल अवमानना के मामले में अधिकतम सज़ा 6 महीने की कैद है. इस पर जस्टिस युयु ललित, एस रविंद्र भाट और पी एस नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद (सुप्रीम कोर्ट की विशेष शक्तियां) और 145 (अपनी कार्रवाई से जुड़े नियम तय करने का सुप्रीम कोर्ट का अधिकार) के तहत इस तरह की कोई सीमा तय नहीं की जा सकती. एमिकस क्यूरी और केंद्र के लिए पेश वकील रजत नैयर की दलीलें सुनने के बाद बेंच ने आदेश सुरक्षित रख लिया.


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