नई दिल्ली:  लोकपाल की नियुक्ति में हो रही देरी के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. आज डेढ़ घंटे तक चली सुनवाई में सरकार और याचिकाकर्ता की तरफ से ज़ोरदार दलीलें रखी गईं.


याचिकाकर्ता एनजीओ कॉमन कॉज़ की तरफ से वरिष्ठ वकील शांति भूषण ने सरकार पर जान-बूझकर देर करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि संसद से लोकपाल कानून पास होने के बाद 16 जनवरी 2014 को उसे राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी. इस बात को 3 साल से ज़्यादा का वक्त बीत गया, लेकिन अभी तक लोकपाल नियुक्त नहीं हुआ है.


शांति भूषण ने आरोप लगाया कि सरकार और राजनीतिक दल भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली लोकपाल जैसी स्वायत्त संस्था चाहते ही नहीं हैं. उन्होंने अन्ना हज़ारे के आंदोलन से दबाव में आकर कानून बनाया. अब अपने ही बनाए कानून को लागू नहीं कर रहे हैं.


उन्होंने कहा कि लोकपाल एक्ट के मुताबिक सलेक्शन कमिटी के 5 सदस्यों में से एक लोकसभा में नेता विपक्ष होता है. सरकार इस बात का बहाना बना रही है कि लोकसभा में अभी कोई नेता विपक्ष नहीं है. सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को सदस्य बनाने के लिए एक्ट में संशोधन करना होगा. जबकि 1977 में संसद ने ही एक कानून में तय कर दिया था कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को नेता विपक्ष का दर्जा मिलेगा.


भूषण ने मांग की कि सुप्रीम कोर्ट सरकार को आदेश दे कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को सलेक्शन कमिटी में रखे और तुरंत कमिटी की बैठक बुलाए. पीएम, लोकसभा स्पीकर, नेता विपक्ष और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस तुरंत बैठें और सलेक्शन कमिटी में अपने 5वें सहयोगी, एक वरिष्ठ कानूनी जानकार का चयन करें. इसके बाद सलेक्शन कमिटी लोकपाल को चुनने का काम शुरू करे.


केंद्र सरकार की तरफ से पेश एटॉर्नी जनरल मुकल रोहतगी ने याचिकाकर्ता की मांग का पुरज़ोर विरोध किया. उन्होंने कहा कि ये सच है कि आज की तारीख में लोकसभा में कोई नेता विपक्ष नहीं है. कांग्रेस पार्टी ने ये पद पाने की कोशिश की थी लेकिन लोकसभा स्पीकर ने इस आग्रह को ठुकरा दिया. ऐसा देश के पहले लोकसभा स्पीकर जी वी मावलंकर की बनाई व्यवस्था के हिसाब से किया गया. उन्होंने ये तय किया था कि नेता विपक्ष का पद पाने के लिए विपक्षी पार्टी के पास लोकसभा के कुल सदस्यों में से 10 फीसदी संख्या होनी चाहिए. इस हिसाब से ये पद 55 सांसदों वाली पार्टी को मिल सकता है. कांग्रेस के सिर्फ 44 सांसद हैं.


एटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार इस मसले को लेकर गंभीर है. सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को जगह देने के लिए लोकपाल कानून में संशोधन करना होगा. स्टैंडिंग कमिटी इसे मंजूरी दे चुकी है. कानून में कई दूसरे ज़रूरी संशोधन संसद में पास होने हैं. एटॉर्नी जनरल ने कोर्ट से आग्रह किया कि वो संसद के काम में दखल न देने.


रोहतगी ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट कई मामलों में ये साफ़ कर चुका है कि उसका काम संसद से पास कानून की समीक्षा करना है. संसद क्या कानून बनाए, कैसे बनाए, इसे देखना कोर्ट का काम नहीं है. जस्टिस रंजन गोगोई और नवीन सिन्हा की बेंच ने सभी पक्षों को सुनने के बाद मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया.