'झूठे मामले दर्ज करने वाले पुलिसकर्मियों पर मुकदमा चलाने के लिए अनुमति की जरूरत नहीं', सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुनाया कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने या सबूत गढ़ने के आरोप में अभियोजन के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है.
Police Misuse: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (13 दिसंबर) को कहा कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने या सबूतों को गढ़ने के आरोप में अभियोजन की अनुमति की जरूरत नहीं होती है. कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि ऐसे अधिकारियों को यह दावा करने का अधिकार नहीं है कि बिना अनुमति के उनका अभियोजन नहीं हो सकता.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे. उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि किसी सार्वजनिक अधिकारी की ओर से अपनी शक्तियों का दुरुपयोग या गलत तरीके से इस्तेमाल को संरक्षण का दावा नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि "जब एक पुलिस अधिकारी पर झूठा मामला दर्ज करने का आरोप लगता है तो वह यह दावा नहीं कर सकता कि उसे अभियोजन की अनुमति की जरूरत है क्योंकि यह किसी भी सार्वजनिक अधिकारी का आधिकारिक कर्तव्य नहीं हो सकता."
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को SC ने पलटा
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ हत्या के मामले में झूठे दस्तावेज बनाने के आरोप में अपराधी मामला रद्द कर दिया गया था केवल इस आधार पर कि अनुमति नहीं ली गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा "हमने कई फैसलों में यह सिद्ध किया है कि किसी भी सार्वजनिक अधिकारी की ओर से कानून के खिलाफ की गई कोई भी कार्रवाई जैसे कि झूठे या गढ़े हुए दस्तावेज बनाना, झूठी गवाही लेना, या किसी आरोपी को अवैध रूप से गिरफ्तार करना, इस पर सेक्शन 197 CrPC का संरक्षण नहीं मिल सकता."
संविधान और कानून के तहत सार्वजनिक अधिकारियों की जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि 'प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट' और 'क्रिमिनल प्रोसीजर कोड' (CrPC) के तहत किसी सार्वजनिक अधिकारी के खिलाफ अभियोजन से पहले उपयुक्त सरकारी प्राधिकरण से अनुमति लेनी जरूरी होती है, लेकिन इस नियम का पालन तब तक नहीं किया जा सकता जब तक उस अधिकारी का काम कानून के खिलाफ न हो. कोर्ट ने साफ किया कि किसी पुलिस अधिकारी का झूठा मामला दर्ज करना या सबूत गढ़ना उसके आधिकारिक कर्तव्यों में नहीं आता.
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