Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस या सीबीआई, ईडी जैसी किसी भी जांच एजेंसी की तरफ से दाखिल होने वाली चार्जशीट को वेबसाइट पर सार्वजनिक किए जाने का आदेश देने से मना कर दिया है. इस बारे में दाखिल याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा है कि चार्जशीट को 'इंडियन एविडेंस एक्ट' की धारा 74 के तहत सार्वजनिक दस्तावेज नहीं कहा जा सकता. यह भी नहीं कहा जा सकता कि इसे सार्वजनिक करने से आरोप पक्ष, बचाव पक्ष या पीड़ित को कोई लाभ होगा.


याचिकाकर्ता सौरव दास ने 2016 में 'यूथ बार एसोसिएशन बनाम भारत सरकार' मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए यह याचिका दाखिल की थी. उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर दर्ज होने के 24 घंटे के भीतर उसे वेबसाइट पर अपलोड करने का आदेश दिया था.


चार्जशीट को भी वेबसाइट पर डालने की मांग की


खुद को खोजी पत्रकार और आरटीआई कार्यकर्ता बताने वाले याचिकाकर्ता की तरफ से वकील प्रशांत भूषण ने पैरवी की थी. उन्होंने पुलिस की तरफ से कोर्ट में दाखिल आरोप पत्र (चार्जशीट) को भी वेबसाइट पर डालने की मांग की. उन्होंने इसे पारदर्शिता के लिहाज से ज़रूरी बताया था. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चार्जशीट, एफआईआर की तरह, एक ‘सार्वजनिक दस्तावेज’ है, क्योंकि चार्जशीट दाखिल करना एक सार्वजनिक अधिकारी का अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में किया गया कार्य था. इस तरह यह ‘सार्वजनिक’ की परिभाषा के दायरे में आता है. दस्तावेज’ साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 74 में निर्धारित है.


भूषण के मुताबिक, पुलिस विभाग या एक जांच एजेंसी द्वारा दायर आरोप-पत्र, अधिनियम की धारा 76 के अनुशासन के अधीन होगा, जो किसी सार्वजनिक दस्तावेज़ के सार्वजनिक प्रकटीकरण की आवश्यकता किसी ऐसे व्यक्ति को सार्वजनिक अधिकारी द्वारा ‘निरीक्षण करने का अधिकार’ है जिसके पास ऐसे दस्तावेज़ की कस्टडी है. 


चार्जशीट की कॉपी कोर्ट उपलब्ध करवाता है


जस्टिस एम आर शाह और सी टी रविकुमार की बेंच ने याचिकाकर्ता की दलीलों को गलत धारणा पर आधारित बताया. बेंच ने कहा, "हमने एफआईआर वेबसाइट पर डालने का आदेश दिया था, ताकि आरोपी को यह पता चल सके कि उसके खिलाफ क्या मामला दर्ज हुआ है. लेकिन चार्जशीट को सार्वजनिक करने से मुकदमे से जुड़े किसी पक्ष का कोई फायदा नहीं है. कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट की कॉपी खुद कोर्ट आरोपी को उपलब्ध करवाता है."


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