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रिश्वत मांगे जाने का सीधा सबूत न होने के बावजूद भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दोष साबित हो सकता हैः सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court: जस्टिस नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए शिकायतकर्ता को पहले रिश्वत की मांग और बाद में इसको लेने की हामी भरने के आरोपों को साबित करना होगा.

Supreme Court On Anti Corruption Law: सुप्रीम कोर्ट ने रिश्वत (Bribe) संबंधी भ्रष्टाचार को लेकर गुरुवार (15 दिसंबर) को एक अहम फैसाल सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि रिश्वत मांगे जाने का सीधा सबूत न होने या शिकायतकर्ता की मृत्यु हो जाने के बावजूद भ्रष्टाचार निरोधक कानून (Anti Corruption Law) के तहत दोष साबित हो सकता है. 5 न्यायमूर्तियों की संविधान पीठ ने माना है कि जांच एजेंसी की तरफ से जुटाए गए दूसरे सबूत भी मुकदमे को साबित कर सकते हैं. फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने टिप्पणी करते हुए कहा, ''भ्रष्टाचार एक कैंसर है, जो व्यवस्था के सभी अंगों पर बुरा असर डाल रहा है.'' 

संविधान पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता के सबूत और रिश्वत के सीधे या प्राथमिक सबूत के अभाव में, अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए गए दूसरे सबूतों के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा के तहत दोष साबित करने की अनुमति है. बता दें कि 5 न्यायमूर्तियों की पीठ ने 23 नवंबर को इस मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. 

क्यो बोले जस्टिस नागरत्ना?

पांच न्यायमूर्तियों की पीठ में से एक जस्टिस नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए शिकायतकर्ता को पहले रिश्वत की मांग और बाद में इसको लेने की हामी भरने के आरोपों को साबित करना होगा. इसको मामले से जुड़े सीधे सबूतों, मौखिक सबूतों या फिर दस्तावेजी सबूतों के आधार पर साबित किया जा सकता है. इसके अलावा, विवादित तथ्य जैसे कि रिश्वत की मांग और उसके लिए हामी भरने के प्रमाण को मौखिक या दस्तावेजी सबूतों के अभाव में सरकमस्टेंशियल सबूत के जरिए भी साबित किया जा सकता है.  

क्या है भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम?

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम संशोधित विधेयक- 2018 के तहत रिश्वत की मांग करने वाले शख्स के साथ-साथ रिश्वत देने वाले को भी इसके दायरे में लाया गया है. इस अधिनियम में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और ईमानदार कर्मचारियों को रिश्वत की मांग करने के झूठे आरोपों से संरक्षण देने का प्रावधान किया गया है. 

इसके अलावा, इस अधिनियम के तहत लोकसेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला चलाने से पहले केंद्र के मामले में लोकपाल से और राज्यों के मामले में लोकायुक्तों से अनुमति लेने की जरूरत होगी. साथ ही रिश्वत देने वाले को अपना पक्ष रखने के लिये 7 दिन का समय दिया जाएगा, जिसे 15 दिन तक बढ़ाया जा सकता है. जांच के दौरान यह भी देखा जाएगा कि रिश्वत किन हालात में दी गई है.

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