Mohammed Zubair मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा- गिरफ्तारी के लिए आपराधिक न्याय तंत्र का किया गया इस्तेमाल
Mohammed Zubair Bail: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के मामले कहा कि गिरफ्तारी को "दंडात्मक हथियार" के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.
Mohammed Zubair Bail: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को कहा है कि गिरफ्तारी को "दंडात्मक हथियार" के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए लेकिन ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर (Alt News co-founder Mohammad Zubair) के खिलाफ आपराधिक न्याय तंत्र का "लगातार इस्तेमाल किया गया." सुप्रीम कोर्ट ने कथित हेट स्पीच (Hate Speech) के लिए उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में जुबैर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के संबंध में उन्हें अंतरिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की.
सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर को जमानत पर रहने के दौरान ट्वीट करने से रोकने की उत्तर प्रदेश सरकार की दलील को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा कि बोलने पर रोक लगाने का आदेश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हतोत्साहित करते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर को 20 जुलाई को अंतरिम जमानत दी थी और विस्तृत आदेश सोमवार शाम उसकी वेबसाइट पर अपलोड किया गया.
एक जैसे अपराध के लिए देशभर में हुई जांच
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि एक जैसे ट्वीट के कारण FIR में कथित तौर पर एक जैसे अपराध दर्ज किए जाने के बावजूद जुबैर के खिलाफ देशभर में कई जांच शुरू की गयी.
पीठ ने अपने 21 पृष्ठों के आदेश में कहा, "उपरोक्त तथ्यों से पता चलता है कि याचिकाकर्ता (जुबैर) के खिलाफ आपराधिक न्याय तंत्र का लगातार इस्तेमाल किया गया. इसके नतीजन वह आपराधिक प्रक्रिया के दुष्चक्र में फंस गए हैं, जहां प्रक्रिया ही अपने आप में सजा बन गयी है."
इससे पहले कोर्ट ने निर्देश दिया था कि उत्तर प्रदेश में जुबैर के खिलाफ दर्ज सभी FIR को दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ को स्थानांतरित किया जाए और यह ट्वीट से संबंधित सभी मौजूदा और भविष्य में दर्ज की जाने वाली प्राथमिकियों के संबंध में लागू रहेगा.
जुबैर के साथ हो निष्पक्ष जांच
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था कि जुबैर के साथ निष्पक्षता के लिए जरूरी है कि सभी प्राथमिकी की पूरी जांच एक साथ और एक ही जांच प्राधिकारी द्वारा की जानी चाहिए. पीठ ने कहा था, "गिरफ्तारी का इस्तेमाल दंडात्मक हथियार के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इसका परिणाम आपराधिक कानून से पैदा हो रहे गंभीर संभावित नतीजों में से एक है- निजी स्वतंत्रता का खो जाना. किसी भी व्यक्ति को महज आरोपों के आधार पर और बिना निष्पक्ष मुकदमा चलाए दंडित नहीं किया जाना चाहिए."
प्रत्येक प्राथमिकी में अंतरिम जमानत पर मिली रिहाई
पीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों की गंभीरता उनके द्वारा किए गए ट्वीट से संबंधित है. उसने कहा, "रिकॉर्ड से पता चला है कि दिल्ली पुलिस द्वारा याचिकाकर्ता को निरंतर जांच के अधीन रखा गया है, हमें याचिकाकर्ता को उसकी स्वतंत्रता से और अधिक वंचित रखने का कोई कारण या औचित्य नजर नहीं आता."
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “नतीजतन, हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता को प्रत्येक प्राथमिकी में अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाए, जो संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इन कार्यवाही का विषय है.” सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद जुबैर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकियों की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) को समाप्त करने का निर्देश दिया.
पीठ ने कहा था कि अदालत उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में दर्ज की गई प्राथमिकी (FIR) की जांच दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के विशेष प्रकोष्ठ को स्थानांतरित करने का निर्देश देने के लिए इच्छुक है. उत्तर प्रदेश में ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर (Alt News co-founder Mohammad Zubair) के खिलाफ कुल सात प्राथमिकियां दर्ज की गयी हैं, जिनमें दो हाथरस में और एक-एक सीतापुर, लखीमपुर खीरी, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद और चंदौली पुलिस थाने में दर्ज की गई है.
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