Supreme Court On ED: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ईडी से प्रतिशोध की कार्रवाई वाले आचरण की उम्मीद नहीं की जाती है. उसे अत्यधिक ईमानदार और निष्पक्षता के साथ काम करना चाहिए.  कोर्ट ने निर्देश दिया कि धनशोधन रोधी एजेंसी को अब से बिना किसी अपवाद के आरोपी को गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप में प्रस्तुत करना होगा. 


दूरगामी प्रभाव वाले एक महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में मनी लॉन्ड्रिंग  जैसे आर्थिक अपराध को रोकने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी वाली एक प्रमुख जांच एजेंसी होने के नाते ईडी की हर कार्रवाई के पारदर्शी और निष्पक्ष होने की उम्मीद की जाती है. 


जस्टिस ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की एक पीठ ने कहा, ‘‘2002 के कड़े अधिनियम के तहत ईडी को दूरगामी शक्तियां प्रदान की गई है और उससे अपने आचरण में प्रतिशोध वाली कार्रवाई करने की उम्मीद नहीं की जाती है और उसे पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ कार्य करना चाहिए. ’’


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेशों के साथ-साथ गिरफ्तारी मेमो को रद्द कर दिया. कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग  मामले में गुरुग्राम स्थित रियल्टी समूह ‘एम3एम’ के निदेशकों बसंत बंसल और पंकज बंसल को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया. 


बेंच ने मंगलवार (3 अक्टूबर) को उच्च न्यायालय के विभिन्न आदेशों को चुनौती देने संबंधी बंसल परिवार की याचिका पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें उनकी जमानत याचिका खारिज करने वाला आदेश भी शामिल था. 


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईडी के पूछे गए सवालों का जवाब देने में आरोपियों की विफलता जांच अधिकारी के लिए यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगी कि उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है.  पीठ ने कहा, ‘‘(पीएमएलए) अधिनियम 2002 की धारा 50 के तहत जारी समन के जवाब में एक गवाह का सहयोग नहीं करना उसे धारा 19 के तहत गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा.’’


जस्टिस कुमार ने क्या कहा?
पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस कुमार ने मामले में बंसल की गिरफ्तारी के तरीके पर भी सवाल उठाया और कहा कि घटनाओं का कालक्रम ‘‘बहुत कुछ कहता है और ईडी की कार्यशैली पर नकारात्मक रूप से नहीं, बल्कि बेहद खराब असर डालता है.’’


गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करने से संबंधित धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधान का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि अब से यह आवश्यक होगा कि गिरफ्तारी के ऐसे लिखित आधारों की एक प्रति गिरफ्तार व्यक्ति को निश्चित रूप से और बिना किसी अपवाद के प्रदान की जाए. ’’


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि गिरफ्तारी के आधार में किसी संवेदनशील सामग्री का उल्लेख किया गया है तो ईडी इसके लिए हमेशा स्वतंत्र रहेगी कि वह दस्तावेज में ऐसे संवेदनशील हिस्सों को संशोधित करे और गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार की संपादित प्रति प्रदान करें, ताकि जांच की शुचिता की रक्षा की जा सके. 


सुप्रीम कोर्ठ ने आश्चर्य व्यक्त क्यों व्यक्त किया 
कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया कि ईडी ने आरोपियों को गिरफ्तारी के आधार प्रदान करने में कोई सुसंगत और समान प्रथा का पालन नहीं किया गया. 


पहले मामले में दिल्ली होई कोर्ट ने सुरक्षा प्रदान किए जाने के तुरंत बाद दूसरा मामला दर्ज करने के बाद बंसल को गिरफ्तार करने के गुप्त आचरण के लिए जांच एजेंसी की आलोचना करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘यह स्वीकार्यता के लायक नहीं है क्योंकि इसमें सत्ता के मनमाने प्रयोग की बू आती है. वास्तव में अपीलकर्ताओं की गिरफ्तारी और परिणामस्वरूप, ईडी की हिरासत और इसके बाद न्यायिक हिरासत में उनकी रिमांड को बरकरार नहीं रखा जा सकता है.’’


क्या मामला है?
बसंत और पंकज बंसल को पहले कथित रिश्वत मामले से जुड़ी धनशोधन जांच के सिलसिले में ईडी ने गिरफ्तार किया था.  जिस धनशोधन मामले में बसंत और पंकज बंसल को गिरफ्तार किया गया है. वह अप्रैल में हरियाणा पुलिस के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के ईडी और सीबीआई मामलों के पूर्व विशेष न्यायाधीश सुधीर परमार, उनके भतीजे और तीसरे एम3एम समूह के समूह निदेशक रूप कुमार बंसल के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर से संबंधित है. 


भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के दर्ज किए गए मामले किए जाने के बाद पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने परमार को निलंबित कर दिया था. 


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