Religion Conversion Case: दबाव या लालच से धर्म परिवर्तन पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, कहा- इससे देश की सुरक्षा को खतरा
SC On Religion Conversion Case: सुप्रीम कोर्ट ने धोखे या लालच से धर्म परिवर्तन करवाने को गलत बताया है. कोर्ट ने केंद्र सरकार से 22 नवंबर तक जवाब देने को कहा है.
Religion Conversion Case: दबाव, धोखे या लालच से धर्म परिवर्तन को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर मामला बताया है. कोर्ट ने कहा कि यह न सिर्फ धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ बल्कि देश की सुरक्षा को भी खतरा पहुंचाने वाली बात है. कोर्ट ने अवैध धर्मांतरण के खिलाफ कानून की मांग पर केंद्र सरकार से 22 नवंबर तक जवाब दाखिल करने को कहा है. अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी.
23 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम आर शाह की अध्यक्षता वाली बेंच ने गलत तरीके से धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कानून बनाने की मांग पर नोटिस जारी किया था. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने दबाव, लालच या धोखे से धर्म परिवर्तन करवाने वालों से सख्ती से निपटने की मांग की है. उन्होंने अपनी याचिका में दबाव के चलते आत्महत्या करने वाली लावण्या के मामले समेत दूसरी घटनाओं का हवाला दिया है.
क्या है लावण्या मामला?
तमिलनाडु के तंजावुर की 17 साल की छात्रा लावण्या ने इस साल 19 जनवरी को कीटनाशक पी कर आत्महत्या कर ली थी. इससे ठीक पहले उसने एक वीडियो बनाया था. उस वीडियो में लावण्या ने कहा था कि उसका स्कूल 'सेक्रेड हार्ट हायर सेकेंडरी' उस पर ईसाई बनने के लिए दबाव बना रहा है. इसके लिए लगातार किए जा रहे उत्पीड़न से परेशान होकर वह अपनी जान दे रही है. मद्रास हाई कोर्ट ने घटना की जांच सीबीआई को सौंपी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के आदेश को सही ठहराया था.
अवैध धर्मांतरण पर नोटिस
पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता ने जजों को बताया था कि लावण्या केस की जांच सीबीआई कर रही है इसलिए अब उस मांग पर सुनवाई की ज़रूरत नहीं है. इस तरह की घटनाओं के पीछे छुपे कारणों को खत्म करना जरूरी है.
उपाध्याय ने कोर्ट को बताया था कि कुछ राज्यों ने धोखे, लालच या अंधविश्वास फैला कर धर्मांतरण के विरुद्ध कानून बना रखे हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कोई कानून नहीं है. इस तरह के ढीले रुख से यह समस्या दूर नहीं की जा सकती. धर्म परिवर्तन करवाने के लिए बड़े पैमाने पर विदेशी फंडिंग हो रही है. इन सब पर ध्यान देने की ज़रूरत है. थोड़ी देर तक वकील की बातों को सुनने के बाद जजों ने माना था कि यह एक गंभीर विषय है. इसके बाद कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय को नोटिस जारी कर दिया था.
केंद्र सरकार से मांगा जवाब
अभी तक सरकार का जवाब दाखिल न होने पर आज जजों ने नाराजगी जताई. जस्टिस शाह ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा, "यह देश की सुरक्षा से भी जुड़ा मसला है. आप कह रहे हैं कि कुछ राज्यों ने कानून बनाए हैं लेकिन हम केंद्र सरकार का स्टैंड जानना चाहते हैं. आप 22 नवंबर तक जवाब दाखिल कीजिए. 28 तारीख को सुनवाई होगी."
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