हत्या के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक दोषी युवक को राहत दी है. हत्या के जुर्म में 17 साल सजा काटने के बाद युवक ने खुद को नाबालिग बताया जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसे रिहा करने के आदेश दिए. दरअसल एक युवक 17 साल और 7 महीने का था जब उसने कत्ल की घटना को अंजाम दिया था. लेकिन उसने और उसके वकील ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपनी सजा को चुनौती देते हुए ट्रायल स्टेज में नाबालिग का हवाला देकर अपना बचाव नहीं किया था. यानी उसने कोर्ट को यह नहीं बताया था कि जुर्म के समय वह नाबालिग था. उसने 17 साल से अधिक समय जेल में काटा. जबकि भारत में एक किशोर के लिए अधिकतम सजा उसे 3 साल की अवधि के लिए एक रिमांड होम में भेजने की है. अदालत ने कहा कि उसे किशोर न्याय बोर्ड (JJB) में भेजना अब अन्यायपूर्ण होगा.


17 साल सजा काटने के बाद युवक ने खुद को बताया नाबालिग


जस्टिस एएम खानविलकर और एएस ओका की पीठ ने उस व्यक्ति द्वारा दायर एक आवेदन पर अपना फैसला सुनाया, जिसने यह तर्क दिया था कि वह अपराध करने की तारीख को किशोर था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सक्षम जेजेबी द्वारा दर्ज किए गए स्पष्ट निष्कर्षों और किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण अधिनियम) 2000 के प्रावधान के मुताबिक आवेदक को जेजेबी को भेजा जाना जरुरी है. कोर्ट ने कहा कि 2000 के अधिनियम की धारा 15 के तहत अधिकतम कार्रवाई जो आवेदक के खिलाफ की जा सकती थी, उसे तीन साल के लिए एक विशेष सुधार गृह भेजने की थी.


सुप्रीम कोर्ट ने युवक को किया रिहा


पीठ ने कहा कि लखनऊ में संबंधित जेल के वरिष्ठ अधीक्षक द्वारा जारी 1 अगस्त 2021 के प्रमाण पत्र में दर्ज है कि 1 अगस्त 2021 तक, आवेदक 17 साल और 3 दिन की सजा काट चुका है. इसलिए, अब यह अन्याय होगा कि उस युवक को किशोर न्याय बोर्ड को भेजें. पीठ ने कहा कि उस व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता के तहत हत्या के अपराध के लिए मई 2006 में एक सत्र अदालत ने दोषी ठहराया था और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. यह भी नोट किया गया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष उनके और अन्य आरोपियों द्वारा की गई अपीलों को खारिज कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 31 जनवरी को यूपी महाराजगंज के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को आवेदक के दावे की जांच करने का निर्देश दिया था.


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