'बिहार में जातिगत सर्वे पर तब तक रोक नहीं लगाएंगे, जब तक कि...', सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
Bihar Caste Survey: बिहार में जातिगत सर्वेक्षण का पहला चरण 21 जनवरी को पूरा हो गया था. पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार को इस सर्वे की अनुमति दी थी. जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.
Supreme Court On Bihar Caste Survey: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को जातिगत सर्वेक्षण की अनुमति देने के पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से सोमवार (21 अगस्त) को कहा कि वह इस प्रक्रिया पर तब तक रोक नहीं लगाएगा जब तक कि वे (याचिकाकर्ता) इसके खिलाफ प्रथम दृष्टया ठोस आधार नहीं देते.
शीर्ष अदालत ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को इस मुद्दे पर सात दिनों के भीतर अपना जवाब दाखिल करने की भी अनुमति दी, क्योंकि उन्होंने कहा था कि सर्वेक्षण के कुछ परिणाम हो सकते हैं. मेहता ने कहा, "हम इस तरफ या उस तरफ नहीं हैं, लेकिन इस कवायद के कुछ परिणाम हो सकते हैं और इसलिए हम अपना जवाब दाखिल करना चाहेंगे."
बिहार जातिगत जनगणना के मामले पर सुनवाई
हालांकि, उन्होंने संभावित परिणामों के बारे में विस्तार से नहीं बताया. हाई कोर्ट के एक अगस्त के फैसले को चुनौती देने वाले विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों और व्यक्तियों की ओर से दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रही जस्टिस संजीव खन्ना और एस. वी. एन. भट्टी की पीठ ने मेहता के अनुरोध पर कार्यवाही स्थगित कर दी. याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत से राज्य सरकार को आंकड़े प्रकाशित करने से रोकने का निर्देश देने की मांग की.
सुप्रीम कोर्ट का रोक लगाने से इनकार
पीठ ने कहा, "आप समझिए, दो चीजें हैं. एक आंकड़ों का संग्रह (Collection) है, वह कवायद जो समाप्त हो गई है, और दूसरा सर्वेक्षण के दौरान एकत्र आंकड़ों का विश्लेषण है. दूसरा भाग, ज्यादा मुश्किल है. जब तक आप (याचिकाकर्ता) प्रथम दृष्टया मामले का आधार बनाने में सक्षम नहीं हो जाते, हम किसी भी चीज पर रोक नहीं लगाने वाले."
इसमें कहा गया है कि बिहार सरकार ने पिछली सुनवाई के दौरान आश्वासन दिया था कि वह डेटा प्रकाशित नहीं करने जा रही है. न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, जब रोहतगी ने बिहार सरकार को रोक लगाने का आदेश देने पर जोर दिया, तो पीठ ने कहा, "राज्य के पक्ष में पहले ही फैसला आ चुका है. यह इतना आसान नहीं है. जबतक प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता, हम इस पर रोक नहीं लगाने वाले."
मामले की अगली सुनवाई 28 अगस्त को
बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने दलील दी कि आदेश में कुछ भी दर्ज नहीं किया जाना चाहिए और राज्य पर कोई रोक नहीं होनी चाहिए. पीठ ने कहा, "मामले को आगे की दलीलें सुनने के लिए आज सूचीबद्ध किया गया था. हम शुक्रवार को वरिष्ठ अधिवक्ता सी. एस. वैद्यनाथन को लगभग 20 मिनट तक सुन चुके हैं." पीठ ने सॉलिसिटर जनरल मेहता की ओर से केंद्र का जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगने के बाद, मामले की आगे की सुनवाई के लिए 28 अगस्त की तारीख तय की.
कोर्ट ने 18 अगस्त को पूछा था कि अगर किसी व्यक्ति ने जातिगत सर्वेक्षण के दौरान जाति या उपजाति का विवरण प्रदान किया तो इसमें क्या नुकसान है, जबकि किसी व्यक्ति का आंकड़ा राज्य की ओर से प्रकाशित नहीं किया जा रहा था. सर्वे को चुनौती देने वाले एनजीओ ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ की ओर से पेश हुए वैद्यनाथन ने कहा था कि ये सर्वे लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन है.
ये भी पढ़ें-