IPC 84: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (4 जनवरी) को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि शराब की लत को मानसिक अस्वस्थता के बराबर नहीं माना जा सकता है. 2009 में हुए दोहरे हत्याकांड के मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए याचिकाकर्ता को राहत देने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट में दोषी ने अपने बचाव में खुद के शराब का लती होने के चलते मानसिक अस्वस्थ होने की बात कही थी. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नकार दिया. याचिकाकर्ता के खिलाफ अपने दो नाबालिग बच्चों की नृशंस हत्या करने के कई सबूत थे. 


सुप्रीम कोर्ट में आरोपी के बचाव में वकील ने शराब की लत को उसकी मानसिक अस्वस्थता से जोड़ने की कोशिश की थी. वकील ने कहा कि ट्रायल के दौरान इस मुद्दे पर कोई चर्चा ही नहीं हुई थी. वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि दोषी को नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती करवाया गया था, लेकिन परिवार वालों ने कोर्स पूरा होने से पहले ही उसे निकाल लिया. जिसके चलते वह शराब का लती बना रहा है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दिनेश महेश्वरी और जस्टिस सुधांशू धूलिया ने नशा मुक्ति केंद्र में और हत्या की योजना के साथ सबूतों को मिटाने को लेकर दोषी के व्यवहार को देखते हुए इस दलील के मानने से इनकार कर दिया. 


मानसिक बीमारी की दवाइयां नहीं खा रहा था आरोपी


सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान इस बात पर भी जोर दिया कि आरोपी को मानसिक बीमारी के लिए किसी तरह की दवाईयां नहीं दी जा रही थीं. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती होने के सबूत हैं, लेकिन उसका इलाज मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति के तौर पर किया जा रहा था, इसके सबूत नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उस दौरान याचिककर्ता में मानसिक अस्वस्थता के कोई लक्षण नहीं दिखाई दिए थे. कोर्ट ने कहा कि बचाव पक्ष की दलीलें मामले के तथ्यों के आगे खारिज की जाती हैं.


क्या था मामला?


2009 के इस मामले में दोषी अपने दो बेटों को लेकर हैदरपुर नहर लेकर गया था. वहां उसने अपने बेटों की गला घोंटकर हत्या कर दी और उनके शवों को नहर में फेंक दिया. इसके बाद दोषी ने ऐसा दिखाने की कोशिश की कि ये डूबने की वजह से होने वाला एक हादसा था. शराब के लती दोषी अपनी पत्नी पर शक करता था और मानता था कि लड़के उसके बेटे नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ये भी कहा कि अपराध करने के दौरान याचिकाकर्ता सतर्क और तेज दिमाग के साथ काम कर रहा था.


क्या है आईपीसी की धारा 84?


आईपीसी की धारा 84 के अनुसार, अपराध करने के दौरान मानसिक अस्वस्थता से जूझ रहे व्यक्ति को दोषी नहीं माना जा सकता है. इसके मुताबिक, मानसिक अस्वस्थ शख्स ये समझ नहीं पाता है कि उसकी ओर से किए जा रहे कार्य का प्रकृति क्या है? आसान शब्दों में कहें, तो जो काम किया गया है, वो कानून के खिलाफ या गलत है, मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति इसका अंदाजा नहीं लगा पाता है. 


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