Supreme Court Judgment: सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के ऐतिहासिक फैसले को स्पष्ट करते हुए कहा कि सशस्त्र बल व्यभिचार (Adultery) के लिए अपने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं. केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने जज के.एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की संविधान बेंच (Constitution Bench) के समक्ष प्रस्तुत किया कि व्यभिचार सैन्य अनुशासन को प्रभावित कर सकता है और नैतिक अधमता के कृत्यों का वर्दीधारी पेशे में कोई स्थान नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया कि जिन अधिकारियों का व्यभिचार के लिए कोर्ट-मार्शल किया जा रहा था, वे सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले का हवाला दे रहे हैं. केंद्र ने जोर देकर कहा कि अधिकारियों द्वारा अनुशासन भंग करने से राष्ट्रीय सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है.
बेंच, जिसमें जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार भी शामिल हैं, ने कहा कि 2018 का फैसला सशस्त्र बल (Armed Forces) अधिनियमों के प्रावधानों से संबंधित नहीं था. बेंच ने कहा कि उसने 2018 के फैसले में केवल व्यभिचार को आपराधिक अपराध के रूप में कम किया था, हमने सेना अधिनियम पर कुछ नहीं कहा था.
अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में बाधा बन सकता
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के फैसले के स्पष्टीकरण की मांग करने वाली केंद्र की याचिका पर आदेश पारित किया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि 2018 का फैसला ऐसे कार्यों में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में बाधा बन सकता है और सेवाओं के भीतर 'अस्थिरता' पैदा कर सकता है. 2018 के फैसले का हवाला देते हुए, रक्षा मंत्रालय ने प्रस्तुत किया था कि चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अपने परिवारों से दूर काम कर रहे सैन्य कर्मियों के मन में हमेशा अप्रिय गतिविधियों में परिवार के शामिल होने के बारे में चिंता रहेगी.
एमओडी ने 27 सितंबर, 2018 के फैसले से सशस्त्र बलों को छूट देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसने व्यभिचार को खत्म कर दिया था. 2018 में, एनआरआई जोसेफ शाइन द्वारा दायर एक याचिका पर, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को व्यभिचार के अपराध से निपटने के लिए असंवैधानिक करार दिया था.
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