Supreme Court: बेवफाई के आरोपों से जुड़े वैवाहिक विवादों (Marital Disputes Involving Allegations Of Infidelity) में नाबालिग बच्चों के डीएनए टेस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (21 फरवरी) को फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन विवादों में नाबालिग बच्चे के डीएनए परीक्षण का नियमित रूप से आदेश नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि इससे बच्चे को आघात हो सकता है.
 
जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा कि एक पक्ष के तथ्य पर मामले में अदालतों से बच्चों के डीएनए परीक्षण या ऐसे अन्य परीक्षण का निर्देश नहीं देना चाहिए. यह जरूरी है कि बच्चे पति-पत्नी के बीच लड़ाई का केंद्र बिंदु न बनें. इसके साथ ही पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली एक महिला की याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें परिवार अदालत के उस निर्देश की पुष्टि की गई थी कि उसके दो बच्चों में से एक को तलाक की कार्यवाही में किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध का आरोप लगाने वाले उसके पति की याचिका पर डीएनए परीक्षण करना चाहिए. 


बच्चे के मन में पैदा कर सकता है भ्रम
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत केवल असाधारण और योग्य मामलों में ही इस तरह के परीक्षण का निर्देश दे सकती है, जहां विवाद को सुलझाने के लिए इस तरह का परीक्षण जरूरी हो जाता है. अदालत ने कहा कि अगर डीएनए परीक्षण में अवैधता का पता चला तो कम से कम मनोवैज्ञानिक रूप से बच्चे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.


यह न केवल बच्चे के मन में भ्रम पैदा कर सकता है, बल्कि यह पता लगाने में भी मदद करता है कि असली पिता कौन है. बेंच ने कहा कि यह नहीं जानना कि किसी का पिता कौन है इससे भी बच्चे में एक मानसिक आघात पैदा होता है.


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