'मुझे जातिगत गालियां दीं', शिकायत पर बोला सुप्रीम कोर्ट- बंद कमरे की घटना SC-ST एक्ट में नहीं, जानें पूरा मामला क्या है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घटना ऐसी जगह पर नहीं हुई है जिसे लोगों की मौजूदगी वाला स्थान कहा जा सकता हो, इसलिए अपराध एससी-एसटी अधिनियम की धारा के तहत नहीं आएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (31 जनवरी, 2025) को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द कर दिया और कहा कि यह घटना लोगों के बीच नहीं हुई थी.
जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(आर) के अनुसार, किसी अपराध के घटित होने के लिए यह स्थापित होना आवश्यक है कि आरोपी ने अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को किसी स्थान पर लोगों के बीच बेइज्जत करने के इरादे से जानबूझकर अपमानित किया या धमकाया हो.
पीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 3(1)(एस) के तहत अपराध स्थापित करने के लिए, यह आवश्यक होगा कि आरोपी ने किसी स्थान पर लोगों के बीच अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) के किसी भी सदस्य को जाति सूचक गाली दी हो. कोर्ट ने कहा, 'इसलिए, हमारा विचार है कि चूंकि घटना ऐसी जगह पर नहीं हुई है जिसे लोगों की मौजूदगी वाला स्थान कहा जा सकता हो, इसलिए अपराध एससी-एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) या धारा 3(1)(एस) के प्रावधानों के तहत नहीं आएगा.'
अधिनियम की धारा 3 अत्याचार के अपराधों के लिए दंड से संबंधित है. सुप्रीम कोर्ट ने प्राथमिकी का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि घटना शिकायतकर्ता के चैंबर में हुई थी और घटना के बाद उसके अन्य सहयोगी वहां पहुंचे. सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फरवरी 2024 के आदेश को चुनौती देने वाले एक व्यक्ति की ओर से दायर अपील पर अपना फैसला सुनाया.
हाईकोर्ट ने तिरुचिरापल्ली की एक निचली अदालत के समक्ष कार्यवाही को रद्द करने की उसकी याचिका को खारिज कर दिया था. अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि सितंबर 2021 में व्यक्ति ने शिकायतकर्ता, जो एक राजस्व निरीक्षक है, से संपर्क किया था ताकि भूमि के पट्टे में नाम शामिल करने के संबंध में अपने पिता के नाम पर दायर याचिका की स्थिति के बारे में जानकारी मिल सके.
झगड़े के बाद, अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता के कार्यालय में उसे जातिगत गालियां दीं. शिकायतकर्ता ने शिकायत दर्ज कराई और एससी-एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) और 3(1)(एस) सहित कथित अपराधों के लिए उस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. जांच के बाद, तिरुचिरापल्ली की एक निचली अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया.
आपराधिक कार्यवाही शुरू होने से व्यथित होकर, व्यक्ति ने इसे रद्द कराने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया. हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि यदि उस पर मुकदमा चलाया जाता है तो इसमें कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'इस तरह यह देखा जा सकता है कि लोगों के बीच का मतलब एक खुले स्थान से है, जहां आम लोग, आरोपी द्वारा पीड़ित से की गई बातचीत को देख या सुन सकें.'
न्यायालय ने कहा कि यदि कथित अपराध बंद कमरे में हुआ, जहां आम लोग मौजूद नहीं थे, तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह लोगों के बीच हुआ. अपील स्वीकार करते हुए पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और संबंधित कार्यवाही के अलावा आरोपपत्र को भी रद्द कर दिया.
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