Supreme Court On Bribe Cases: रिश्वत मांगे जाने का सीधा सबूत न होने या शिकायतकर्ता की मौत हो जाने के बावजूद भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दोष साबित हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने यह अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने माना है कि जांच एजेंसी की तरफ से जुटाए गए दूसरे सबूत भी मुकदमे को साबित कर सकते हैं.
फैसले के दौरान कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार एक कैंसर है, जो व्यवस्था के सभी अंगों पर बुरा असर डाल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी अदालतों से कहा कि वे भ्रष्टाचार के मामलों में आरोपी के प्रति उदारता न बरतें. सिर्फ तकनीकी कमियों के आधार पर उन्हें बरी कर देना सही नहीं. कोर्ट ने उम्मीद जताई कि भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने वाले और जांच अधिकारी, दोनों ईमानदारी से प्रयास कर मुकदमों को अंजाम तक पहुंचाएंगे. इससे सरकारी कामकाज से भ्रष्टाचार का प्रदूषण दूर होगा.
इन पांच न्यायमूर्तियों की बेंच ने दिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायमूर्तियों की बेंच ने इस मामले पर 22 नवंबर को आदेश सुरक्षित रखा था. जस्टिस नजीर के अलावा इस बेंच के सदस्य थे- जस्टिस बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना. जस्टिस नागरत्ना ने सभी न्यायमूर्तियों की तरफ से फैसला लिखा था. उन्होंने ही इसे पढ़ा भी.
कोर्ट ने क्या कहा?
इस फैसले में कोर्ट ने कहा है कि जब रिश्वत देने वाला खुद इसका प्रस्ताव दे और सरकारी कर्मचारी उसे स्वीकार कर ले तो भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 7 का मामला होता है. वहीं, अगर रिश्वत सरकारी कर्मचारी की तरफ से मांगी गई हो और जिसे अपना काम करवाना हो, वह उसे देने को तैयार हो जाए तो धारा 13 (1)(d) और 13 (2) का मामला होता है. दोनों ही मामलों में कोर्ट को सख्ती से काम लेना चाहिए.
फैसले में कहा गया है कि धारा 7 का मामला धारा 20 के साथ देखा जाता है. यानी यह मान कर चला जाता है कि सरकारी कर्मचारी को मिली रकम या संपत्ति की वजह भ्रष्टाचार ही है, लेकिन दूसरे मामले (जिसमें मांग खुद सरकारी कर्मचारी ने की थी) में भी सिर्फ इस आधार पर राहत नहीं मिल जानी चाहिए कि शिकायतकर्ता बाद में मुकर गया या मुकदमे के दौरान उसकी मौत हो गई. जांच अधिकारी की तरफ से जुटाए गए सभी सबूतों को देखने के बाद ही कोर्ट को फैसला लेना चाहिए.
ये भी पढ़ें: