जमानत आदेश के छह महीने बाद अदालतें बांड भरने के लिए नहीं कह सकतीं, बोला सुप्रीम कोर्ट
निचली अदालत ने व्यक्ति को 10,000 रुपये के बांड और इतनी ही राशि की दो जमानतें प्रस्तुत करने पर रिहा करने का निर्देश दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (30 अक्टूबर, 2024) कहा कि अदालतें जमानत आदेश पारित होने के छह महीने बाद आरोपी पर जमानत बांड प्रस्तुत करने की शर्त नहीं लगा सकतीं.
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि अगर कोर्ट मामले के गुण-दोष से संतुष्ट है तो उसे या तो जमानत दे देनी चाहिए या फिर याचिका खारिज कर देनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर को एक व्यक्ति की ओर से दायर याचिका पर विचार किया था, जिसने पटना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. इस आदेश में बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद संशोधन अधिनियम के तहत उसके खिलाफ दर्ज मामले में छह महीने बाद जमानत बांड प्रस्तुत करने का उसे निर्देश दिया गया था.
निचली अदालत ने व्यक्ति को 10,000 रुपये के बांड और इतनी ही राशि की दो जमानतें प्रस्तुत करने पर रिहा करने का निर्देश दिया.
याचिका पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'यह पिछले कुछ दिनों में उच्च न्यायालय द्वारा पारित कुछ आदेशों में से एक है, जिसमें मामले का गुण-दोष के आधार पर निर्णय किए बिना उच्च न्यायालय ने वर्तमान याचिकाकर्ता को इस शर्त पर जमानत दे दी है कि याचिकाकर्ता-आरोपी आदेश पारित होने के छह महीने बाद जमानत बांड प्रस्तुत करेगा.'
इसने कहा कि इस बात का कोई कारण नहीं बताया गया कि जमानत देने के आदेश के क्रियान्वयन को छह महीने के लिए क्यों स्थगित किया गया.
पीठ ने कहा, 'हमारी राय में किसी व्यक्ति/आरोपी को जमानत देने के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं लगाई जा सकती' सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और तथा गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से निर्णय करने के लिए इसे 11 नवंबर को संबंधित अदालत के समक्ष सूचीबद्ध किया. मामला याचिकाकर्ता के वाहन से 40 लीटर देशी शराब की कथित बरामदगी से संबंधित है.
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