महिलाओं के खिलाफ अपराध मामलों में अदालतों से संवेदनशील होने की उम्मीद: सुप्रीम कोर्ट
Crime Against Women: सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े मामलों में अदालतों से संवेदनशील होने की उम्मीद की है.
SC On Crime Against Women: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने महिलाओं के खिलाफ अपराध (Crime Against Women) से जुड़े मामलों में अदालतों से संवेदनशील होने की उम्मीद जताई है. दरअसल, उत्तराखंड हाई कोर्ट (Uttarakhand High Court) ने एक शख्स और उसकी मां को पत्नी के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने के लिए दोषी ठहराया था जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि मौत का कारण जहर था.
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह उम्मीद की जाती है कि अदालतें अपराधियों को प्रक्रियात्मक तकनीकीताओं, अपूर्ण जांच या सबूतों में महत्वहीन कमियों के कारण बचने की अनुमति नहीं देंगी, वरना अपराध के लिए बिना सजा दिए जाने से पीड़ित पूरी तरह से हतोत्साहित हो जाएंगे.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने शुक्रवार को दिए अपने फैसले में कहा, "महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े मामलों में अदालतों से संवेदनशील होने की उम्मीद की जाती है." शीर्ष अदालत का यह फैसला दो दोषियों की ओर से उत्तराखंड हाई कोर्ट के मार्च 2014 के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करने के दौरान आया है.
अहम बात यह है कि हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा था, जिसने 2007 में दर्ज मामले में मृतक के पति और सास को दोषी ठहराया था.
कोर्ट ने मृतका के पति बलवीर सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 498-ए (एक विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया था. वहीं, मृतका की सास को आईपीसी की धारा 498-ए (पति या पति के रिश्तेदार द्वारा किसी महिला के साथ क्रूरता करना) के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था.
1997 में हुई थी पीड़िता की शादी
शीर्ष अदालत ने कहा कि पीड़िता ने दिसंबर 1997 में सिंह से शादी की थी, लेकिन मई 2007 में पीड़िता की संदिग्ध हालातों में मौत हो गई थी. इस मामले में जून 2007 में मृतका के पिता ने एक मजिस्ट्रेट अदालत में आवेदन दायर किया था और बेटी की मौत के संबंध में पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
पिता की अपील के बाद पुलिस ने दर्ज की थी FIR
पिता की अपील पर बाद में पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर महिला के पति और सास को गिरफ्तार कर लिया था. सुनवाई के दौरान दोनों ने खुद को निर्दोष बताया था और कहा था कि उनको झूठे मामले में फंसाया गया है. ट्रायल कोर्ट में दोनों आरोपियों को दोषी करार दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने के लिए हाई कोर्ट का रुख किया था.
उत्तराखंड HC ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रखा था बरकरार
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए दोनों की दोषसिद्धि की पुष्टि की थी, लेकिन दोनों दोषियों की ओर से हाई कोर्ट के फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. शीर्ष अदालत ने अब हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए महिला की मौत का कारण जहर होने की पुष्टि की है.
पीठ ने कहा, ''हम आत्महत्या के सिद्धांत को पूरी तरह से खारिज करते हैं जैसा कि अपीलकर्ताओं की ओर से पेश करने की मांग की गई थी.''
अदालत ने सुनवाई के दौरान कई पुराने फैसलों का दिया हवाला
इस मामले में पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ पिछले फैसलों का हवाला भी दिया और कहा कि यह स्पष्ट है कि अदालत को आपराधिक मामलों में साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 को सावधानी और सावधानी से लागू करना चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि अभियुक्त के अपराध की ओर इशारा करने वाली परिस्थितियों के सबूत पेश करने में अभियोजन पक्ष की असमर्थता की भरपाई के लिए अधिनियम की धारा 106 को लागू नहीं किया जा सकता है.
इसमें कहा गया है, "इस धारा का इस्तेमाल दोषसिद्धि का समर्थन करने के लिए तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि अभियोजन पक्ष अपराध को स्थापित करने के लिए आवश्यक सभी तथ्यों को साबित करके जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर लेता."
पीठ ने कहा, "जब तथ्य विशिष्ट रूप से आरोपी की जानकारी में हों, तो ऐसे तथ्यों का साक्ष्य पेश करने का बोझ उस पर होता है, चाहे प्रस्ताव सकारात्मक हो या नकारात्मक."
कोर्ट ने कहा- पति जानता था पत्नी के साथ वास्तव में क्या हुआ था
मामले के तथ्यों का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि यह अदालत की संतुष्टि के लिए स्थापित किया गया है कि मृतक उस समय अपने पति के साथ थी जब उसके स्वास्थ्य के साथ कुछ गलत हुआ था और इसलिए, ऐसी परिस्थितियों में, जब तक वह उसके साथ थी, वह ही जानता था कि उसके साथ क्या हुआ था.
कोर्ट ने कहा, "हम इस तथ्य पर ध्यान देते हैं कि अपीलकर्ता-दोषी (पति) ने किसी भी तरह से यह नहीं बताया है कि वास्तव में उसकी पत्नी के साथ क्या हुआ था.'' हालांकि, पीठ ने पीड़िता की सास की सजा को घटाकर पहले ही पूरी की जा चुकी अवधि तक कर दिया है. ट्रायल कोर्ट ने मृतका की सास को ढाई साल की सजा सुनाई थी.
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