Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और दूसरे सक्षम अधिकारियों से कहा है कि वे मौत की सजा पाए दोषियों की दया याचिकाओं पर फैसले में देरी न करें. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह देरी सजा के उद्देश्य को विफल कर सकती है. इसके साथ ही लंबी देरी का फायदा दोषी सजा को उम्रकैद में बदलने के लिए उठा सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी रेणुका शिंदे उर्फ रेणुका बाई की मौत की सजा को उम्र कैद में बदलने से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान की थी. रेणुका शिंदे को 1990 से 1996 के बीच 13 बच्चों का अपहरण करने और उनमें से 9 की हत्या करने का दोषी पाया था. रेणुका शिंदे को ट्रायल कोर्ट ने 2001 में मौत की सजा सुनाई थी.
हाई कोर्ट ने बदला था फैसला
अगर रेणुका शिंदे को फांसी दी जाती तो वह देश की पहिला होतीं जिनकी मौत की सजा पर अमल होता. हालांकि, जनवरी 2022 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. कोर्ट ने इसके लिए सजा में देरी को आधार माना था.
महाराष्ट्र के राज्यपाल ने साल 2008 में रेणुका शिंदे की दया याचिका खारिज कर दी थी. इसके बाद एक अन्य दया याचिका राष्ट्रपति के समक्ष दायर की गई. इस पर भी 2014 में फैसला आया जो रेणुका के खिलाफ ही रहा. याचिका में देरी हाईकोर्ट में रेणुका के पक्ष में गई और मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई.
सुप्रीम कोर्ट ने नहीं किया हस्तक्षेप
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए राज्यों को निर्देश दिया कि वे दया याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला लिया जाए जिससे अभियुक्तों को देरी का फायदा न मिले.
पीठ ने कहा, "इस अदालत के अंतिम फैसले के बाद भी, दया याचिका पर फैसला नहीं करने में अत्यधिक देरी से मौत की सजा का उद्देश्य विफल हो जाएगा.
पीठे ने आगे कहा, "राज्य सरकार या संबंधित अधिकारी यह देखने का प्रयास करें कि दया याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला किया जाए और उनका निपटारा किया जाए, ताकि अभियुक्त भी अपने प्रारब्ध को पा सकें और पीड़ितों को भी न्याय मिल सके.
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