Supreme Court On Victoria Gauri: तमाम विवादों के बीच बीते दिन (7 फरवरी) लक्ष्मणा विक्टोरिया गौरी (Laxmana Victoria Gauri) ने मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) के एडिशनल जज के रूप में शपथ ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भी उनकी नियुक्ति के खिलाफ दायर दोनों याचिका को शपथ से 10 मिनट पहले सुना और खारिज कर दिया. इस याचिका में विक्टोरिया गौरी के राजनीतिक बैकग्राउंड (Political Background) पर सवाल उठाया गया था. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जज बनने के लिए पिछला राजनीतिक संबंध कोई बाधा नहीं है. 


नियुक्ति के खिलाफ यह याचिका मद्रास हाई कोर्ट के 21 वकीलों की तरफ से जमा की गई थी. इनमें अन्ना मैथ्यू, सुधा रामलिंगम, डी नागासैला और आर वैगई समेत कई नाम शामिल थे. उनका आरोप था कि विक्टोरिया गौरी बीजेपी (BJP) की सदस्य रही हैं और उन्होंने इस्लाम और ईसाई धर्म के बारे में कुछ आपत्तिजनक लेख भी लिखे हैं. नियुक्ति का विरोध करने वाले वकील शपथ से पहले जल्दी सुनवाई की मांग के साथ ज्यादा एक्टिव हो गए थे. 


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?


सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछला राजनीतिक संबंध किसी तरह की कोई अयोग्यता नहीं थी. विक्टोरिया गौरी एक संवैधानिक कोर्ट में जज बनने के लिए सभी एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया को पूरा करती हैं. कोर्ट ने कहा कि जज के रूप में किसी उम्मीदवार की नियुक्ति को रोकने के लिए राजनीतिक संबंध कभी भी आधार नहीं रही है. इस याचिका पर सुनवाई करने के लिए शपथ की एक रात पहले अनुरोध किया गया था. 


शपथ से 10 मिनट पहले सुनवाई 


शपथ से महज 10 मिनट पहले इस याचिका पर सुनवाई की गई. पहले सुनवाई दोपहर 12 बजे होनी थी लेकिन शपथ ग्रहण का समय सुबह 10.35 बजे होने के चलते इन याचिकाओं को पहले सुना गया. सुनवाई करने वाली बेंच जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की थी. 10.25 बजे सुनवाई शुरू की गई और पता लगाया गया कि शपथ ग्रहण पर रोक लगाने वाली याचिका किन आधारों पर जमा की गई है. 


नफरती भाषण पर कोर्ट ने क्या कहा?


पीठ ने कहा कि एलिजिबिलिटी और सूटेबिलिटी में अंतर है. एलिजिबिलिटी पर चुनौती दी जा सकती है. लेकिन सूटेबिलिटी पर अदालतों को नहीं पड़ना चाहिए. इससे पूरी प्रक्रिया नियंत्रण से बाहर हो जाएगी. राजनीतिक बैकग्राउंड को लेकर जस्टिस गवई ने कहा कि उनकी वह भी इससे पहले राजनीति से जुड़े थे लेकिन यह कभी उनके कर्तव्यों के आड़े नहीं आया. इसपर सीनियर एडवोकेट राजू रामचंद्रन ने कहा कि सवाल केवल राजनीति का नहीं बल्कि नफरती भाषण (Hate Speech) का भी है. कोर्ट ने इसपर कहा कि यह  यह मान लेना ‘उचित नहीं होगा’ कि कॉलेजियम ने इन चीजों पर ध्यान नहीं दिया होगा. कॉलेजियम को निर्देश नहीं दिया जा सकता. 


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