Supreme Court News: कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय के लिए चार फीसदी आरक्षण खत्म करने का मामला सुप्रीम कोर्ट में है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस पर नाराजगी जताई कि जब मामला कोर्ट में लंबित है तब सार्वजनिक हस्तियां (राजनेता) इस पर बयानबाजी कर रही हैं. कोर्ट का कहना है कि जनप्रतिनिधियों को कोर्ट में लंबित किसी भी मुद्दे के बारे में राजनीतिक बयान नहीं देना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि न्यायिक कार्यवाही की गरिमा बनाए रखना जरूरी है.
कोर्ट की यह टिप्पणी तब आई जब गृह मंत्री अमित शाह ने कर्नाटक में मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) कोटा वापस लेने की बात कही थी. हालांकि, कोर्ट ने इस दौरान किसी का नाम नहीं लिया. जस्टिस केएम जोसेफ की अगुवाई वाली पीठ ने जोर देकर कहा कि वह नहीं चाहती कि कर्नाटक में मुसलमानों के लिए आरक्षण का मुद्दा ऐसे समय में "राजनीतिक" हो जाए जब कोर्ट में यह पेंडिंग है.
क्या बोले जस्टिस?
केएम जोसेफ ने कहा, 'इससे हम सभी आहत हैं... अगर कोई मामला किसी कोर्ट में लंबित है तो कोई बयान नहीं दिया जाना चाहिए, खासकर जनप्रतिनिधियों को. सुप्रीम कोर्ट के सामने मामले लंबित होने पर गरिमा को बनाए रखा जाना चाहिए. अदालत के आदेश के जवाब में, कोई बयान नहीं दिया जाना चाहिए. हम नहीं चाहते कि आरक्षण का राजनीतिकरण किया जाए."
क्या है पूरा मामला?
पीठ बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के 27 मार्च के सरकारी आदेश (GO) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मुस्लिमों के लिए 4 प्रतिशत ओबीसी कोटा खत्म कर दिया गया था और इसे वीरशैव-लिंगायतों और वोक्कालिगाओं को समान रूप से वितरित किया गया था. कर्नाटक सरकार के फैसले को व्यापक रूप से मई में होने वाले राज्य चुनावों से पहले दो प्रमुख पिछड़े वर्गों को खुश करने के उद्देश्य से उठाए गए कदम के रूप में देखा गया था. कर्नाटक में बुधवार (10 मई) को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान है और नतीजे 13 मई को आएंगे.
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