नई दिल्ली: निजता के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक अधिकार करार दिया है. सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से इस बात पर मुहर लगा दी है. इस फैसले के बाद आम नागरिक को बड़ी राहत मिल गई है. इस फैसले का सीधा असर आधार कार्ड पर पड़ा है. अब आधार कार्ड, पैन कार्ड और क्रेडिट कार्ड की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से केंद्र सरकार को बड़ा झटका लगा है, क्योंकि केंद्र सरकार ने अपनी दलील दी थी कि निजता को मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया जा सकता.


सुप्रीम कोर्ट ने 50 और 60 के दशक में आए सुप्रीम कोर्ट के दो पुराने फैसलों को पलट दिया है.  50 और 60 के दशक में एम पी शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट के 8 जजों और खड़क सिंह मामले में 6 जजों की बेंच कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है. 



संविधान पीठ में शामिल थे ये नौ जज 

सुप्रीम कोर्ट की जिस संविधान पीठ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिया है उसमें चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस आरएफ नरीमन,जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस अब्दुल नजीर,  जस्टिस एएम सप्रे, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, और जस्टिस एसए बोबडे शामिल थे.

क्या होते हैं मौलिक अधिकार?


मौलिक अधिकार, संविधान से हर नागरिक को मिले बुनियादी मानव अधिकार हैं. जैसे - बराबरी का अधिकार, अपनी बात कहने का अधिकार, सम्मान से जीने का अधिकार वगैरह. इन अधिकारों का हनन होने पर कोई भी व्यक्ति हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकता है.


निजता को मौलिक अधिकार का दर्जा मिला, अब क्या होगा?


इस फैसले का सबसे बड़ा असर ये होगा कि भविष्य में सरकार के किसी भी नियम-कानून को इस आधार पर चुनौती दी जा सकेगी कि वो निजता के अधिकार का हनन करता है. हालांकि, किसी भी मौलिक अधिकार की सीमा होती है. संविधान में बकायदा उनका ज़िक्र है. कोर्ट को निजता की सीमाएं भी तय करनी पड़ेंगी. ऐसा नहीं हो सकता की निजता कि दलील देकर सरकार का हर काम ही ठप करा दिया जाए. यानी कल को कोई ये कहना चाहे कि वो बैंक एकाउंट खोलने के लिए अपनी फोटो या दूसरी निजी जानकारी नहीं देगा तो ऐसा नहीं हो सकेगा.


क्या निजता का अधिकार पहले भी था ?


संविधान में सीधे इसका ज़िक्र नहीं है. लेकिन व्यावहारिक रूप से इसे अनुच्छेद 21 यानी सम्मान से जीवन के अधिकार का एक हिस्सा माना जाता है. यानी अगर कानूनी अनिवार्यता ना हो और तरीका कानूनी ना अपनाया जाए तो सरकार आपकी निजता का हनन नहीं कर सकती. बैंक वाले उदाहरण में फोटो कानूनी ज़रूरत है. उसी तरह कहीं छापा मारने से पहले पुलिस का सर्च वारंट लेना कानूनी तरीका है. यानी बेवजह निजता का हनन नहीं किया जाता. ऐसा करना सम्मान से जीवन के अधिकार का हनन माना जाता है.


क्यों हुई सुनवाई?


यूनिक आइडेंटफिकेशन नंबर या आधार कार्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. इन याचिकाओं में सबसे अहम दलील है आधार से निजता के अधिकार के हनन की. याचिकाकर्ताओं ने आधार के लिए बायोमेट्रिक जानकारी लेने को निजता का हनन बताया है. जबकि सरकार की दलील थी कि निजता का अधिकार अपने आप में मौलिक अधिकार नहीं है. अगर इसे मौलिक अधिकार मान लिया जाए तो व्यवस्था चलाना मुश्किल हो जाएगा. कोई भी निजता का हवाला देकर ज़रूरी सरकारी काम के लिए फिंगर प्रिंट, फोटो या कोई जानकारी देने से मना कर देगा.