(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
SC/ST Reservation: SC/ST आरक्षण के तहत ज्यादा पिछड़ी जातियों को मिल सकता है अलग कोटा, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
Reservation For SC/ST Categories: हाईकोर्ट ने पंजाब में वाल्मीकि और मजहबी सिख जातियों को अनुसूचित जाति आरक्षण का आधा हिस्सा देने के कानून को निरस्त किया था. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.
Quota within Quota: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को लेकर गुरुवार (1 अगस्त) को बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने 6:1 के बहुमत से कहा कि एससी/एसटी कैटेगरी के भीतर ज्यादा पिछड़ों के लिए अलग कोटा दिया जा सकता है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने माना है कि एससी/एसटी आरक्षण के तहत जातियों को अलग से हिस्सा दिया जा सकता है. सात जजों की बेंच ने बहुमत से यह फैसला दिया है.
दरअसल, पंजाब में वाल्मीकि और मजहबी सिख जातियों को अनुसूचित जाति आरक्षण का आधा हिस्सा देने के कानून को 2010 में हाईकोर्ट ने निरस्त किया था. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. गुरुवार को इस याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला किया. माना जाता है कि एससी/एसटी कैटेगरी में भी कई ऐसी जातियां हैं, जो बहुत ही ज्यादा पिछड़ी हुई हैं. इन जातियों के सशक्तिकरण की सख्त जरूरत है.
जातियों के पिछड़ेपन का देना होगा सबूत: सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जिस जाति को आरक्षण में अलग से हिस्सा दिया जा रहा है, उसके पिछड़ेपन का सबूत होना चाहिए. शिक्षा और नौकरी में उसके कम प्रतिनिधित्व को आधार बनाया जा सकता है. सिर्फ किसी जाति की संख्या ज्यादा होने को आधार बनाना गलत होगा.
अदालत ने कहा कि अनुसूचित जाति वर्ग एक समान नहीं है. कुछ जातियां ज्यादा पिछड़ी हुई हैं. उन्हें अवसर देना सही है. हमने इंदिरा साहनी फैसले में OBC के सबक्लासिफिकेशन की अनुमति दी. यह व्यवस्था अनुसूचित जाति के लिए भी लागू हो सकती है.
कुछ जातियों ने दूसरों के मुकाबले ज्यादा भेदभाव सहा: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ अनुसूचित जातियों ने सदियों से दूसरी अनुसूचित जातियों की तुलना में ज्यादा भेदभाव सहा है. हालांकि, हम फिर साफ करते हैं कि कोई राज्य अगर आरक्षण का वर्गीकरण करना चाहता है तो उसे पहले आंकड़े जुटाने होंगे.
अदालत ने कहा कि यह देखा गया है कि ट्रेन के डिब्बे से बाहर खड़े लोग अंदर जाने के लिए संघर्ष करते हैं. मगर जो अंदर जाते हैं, वह दूसरों को अंदर नहीं आने से रोकना चाहते हैं. जिन लोगों को सरकारी नौकरी मिल गई है और जो अभी भी गांव में मजदूरी कर रहे हैं, उनकी स्थिति अलग है.
यह भी पढ़ें: देश में कहां मिल रहा है सबसे ज्यादा आरक्षण? जानें इसे लेकर क्या हैं नियम